Monday, December 23, 2013

सुदामा याद आता है


सुदामा याद आता है 


हितैषी हो अगर कोई, सदा सद मान रखता है,
गर्दिश में आ जाएं,  तो अंगुली थाम लेता है।    

बहुत से धन ज़माने में, जमा कर कोई सकता है, 
मगर इक मीत जीवन में, खुदा ही भेंट करता है।  

बहक  जाएं जो राहों से, हमें रस्ते पे लाता है,
कभी जो हार के बैठे, भरोसा वो दिलाता है।  

नहीं अच्छे - भले में ही हमारा साथ देता है,
बुरा करने पे नाराज़ी से नश्तर मार देता है।  

बढ़ें जो आप आगे हम, ख़ुशी से वो अघाता है, 
जहां मिलता है, धीमे से, मगन वो मुस्कुराता है।

धन, बोल, बानी, कद. बड़ा, ना दर्प करता है, 
गले मिलता है ऐसे वो, सुदामा याद आता है। 
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Thursday, December 12, 2013

यूंही ज़माना चल रहा

यूंही ज़माना चल रहा


1.
इस किनारे, पार उस, क्या देखता है तू ,
धार की रंगत अजब, तजबीजता है तू !   

2.
मीत ही समझा किया, गुनता रहा जिन तू,
किस तरह आहत किया, अब सोचता  है तू ! 

3.
साथ में चलता हुआ, फिर-फिर ठगा है तू , 
रिश्ते नही, रूपा ही सब, अब चौंकता है तू !        

4.
आदत वही, वो ही चलन, ना छोड़ता है तू ,
फिर वैतलवा डाल पर,  ज्यूँ डोलता है तू !  

5.
सरकसी का मामला, समझा नहीं ये तू, 
चढ़, वो नसेनी तोड़ते, नीचे रहा है तू !    

6.
आँख का पानी मरा, क्या ढूँढता है तू,
अपने लिहाज़ों का नतीज़ा, भोगता है तू !  , 

7.
दोष उनका है कहाँ, क्यों रूसता  है तू ,
यूंही ज़माना चल रहा, क्यों भूलता है तू !

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Thursday, December 5, 2013

ऐसा ही सही

ऐसा ही सही 
 
१ 
नेह रखते हैं, उनसे, महज मासूमी से,
 सब छोड़ दें उनके लिए, ऐसा भी नहीं। 
२. 
खबर रखते हैं सब, उडती हुई निगाहों से,
करीब जा रुकें तनिक, ऐसा भी नहीं। 
३.  
रिश्ते बहुत से, और भी हैं, इस जहाँ में उनके,
तोड़ कर उनको चले जाएं, ऐसा भी नहीं।  
४.  
उस जहाँ में हैं जहां, मौज़ों में हैं रहा करते, 
 पार उसके निकल जाएं, ऐसा भी नहीं। 
 ५. 
साजो सामान हैं जो उनका दिल लगाने के,
भूल कर उनको चले आएं, ऐसा भी नहीं।  
 ६.
कैसी ये रीति है, उनकी ये कैसी प्रीति भरी,
अलग ज़माने से  जा सकें, ऐसा भी नहीं।
 ७. 
हज़ारहाँ बार की हैं कोशिशें  दीवारों ने,
रोक पाएं उनका नेह वो, ऐसा भी नहीं।
 ८. 
अपने आलम में रहें, वो इसी सलीके से, 
उनने भी मन मना लियाऐसा ही सही।  
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Sunday, November 24, 2013

वास्तु गढ़ाएं नए नए

वास्तु गढ़ाएं नए नए

१. 
चारों खम्भे टूट चुके हैं, मंदिर सारे ध्वस्त हुए,
प्राण हीन देवता हुए हैं, भू लुंठित सब पड़े हुए।  

२. 
दिशा छोड़ दिक्पाल भगे हैं, द्वारपाल हैं दरक गए, 
वेदी भग्न, कपोत उड़े हैं, भगत विचारें डरे हुए।  

३. 
भोग पुजारी लूट रहे हैं, मंदारक पर खड़े हुए,
वे ही ललाट पर शोभित हैं, रथिकाओं में जमे हुए। 

४. 
मंडप में 'लीला' चलती है, रक्षक भक्षक बने हुए, 
अंतराल में व्याल  बसे हैं, गर्भनाल से बंधे हुए।  

५. 
अंदर 'महिष' विराज रहे हैं, 'गौरी' के दिन चले गए, 
घट-पल्लव विष बुझे हुए हैं, चन्द्रशिला पर टिके हुए।  

६. 
कुटिल पताका फहराते है, शिखर-शिखरिका चढ़े हुए, 
उनकी ही महिमा बजती है, बीज बिजौरा भरे हुए।  

७. 
अन्धकार अब सर्वभद्र है, 'बिसकर्मा' - 'मय' ठगे हुए,
स्थपती भौंचक्क खड़े हैं, सूत्र-धार औचक्क हुए।  

८. 
कोई और साधना नहीं है, मंत्र सभी तो भ्रस्ट हुए, 
नई तपस्या ही उपाय है, वास्तु गढ़ाएं नए नए।  

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Saturday, November 9, 2013

थोडा ही सफ़र बाक़ी है

थोडा ही सफ़र बाक़ी है

November 9, 2013 at 6:07pm

१.
हम दूर हुए लेकिन, हिचकी तो अभी आती है,
कुछ आदतें पुरानी, यूं ही न छूट पाती हैं।




कुछ खुशबुएं हैं ऎसी, हवाओं में बसी आती हैं,
साँसों में भिनी रहतीं, ज़ेहन में भरी जाती हैं।




कुछ लीक पड़ीं गहरी, ज्यों संग पे उकेरी हैं,
वो रास्तों की घुमरी, माथे में घूम जाती हैं।   


कुछ गुफ्तुगू हैं ऎसी, हौले से गुनगुनाती हैं,
सोते से आ जगाती, दस्तक सी बजाती हैं।  




अक्सर ही तेरी यारी, शिद्दत से उभर आती है. 
जब बैठते अकेले, साए सी चली आती है।


ये वो 'घड़ी' तुम्हारी, ये भेंट गज़ब ढाती है,  
जो बीत गई उनकी, यादों की गहर लाती है।




ये प्यालियाँ रुपहली, भावों भरी सजा दी हैं, 
खीर खाने को यहाँ, दिल से सटा रख्खी हैं। 




ये चादरें उजाली, कांधे पे ला ओढ़ा दी हैं,
ज़ज़बात में सहेजी, ला के गले सजा दी हैं।




चादर बुनी कबीरी, तुमने मुझे नवाज़ी है,
कैसे निभेगी इसकी? ये फिक्र बड़ी भारी है।



१०
शाम ढल रही अब, उस पार वो किनारी है,
गोधूलि छा रही अब, गीता हमें थमा दी है !




११.
अगले गए हैं जिस पथ, ये उसकी बानगी है,  
ये है मुझे तसल्ली, थोडा ही सफ़र बाक़ी है।

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Monday, November 4, 2013

बरम बान अस खूंटी दीख

बरम बान अस खूंटी दीख

१.
कांकर पाथर हेरत भाय, जीवन बेरथ गइल बिताय,
इहाँ सबै सब हौ निःसार, 'माया' सांचौ अपरम्पार।

२.
विश्व ख्याति कै लम्बरदार, मिश्रा-वर्मा-लाल सुजान,
साधे केतनौ तीर कमान, धान पसेरी तुले तमान।  

३.
बीछी काटी, मंतर भूल, निकसे फणधर कारे कूट, 
काँटा, कोना, दमदम कीच, कहाँ परे ना कोऊ पूछ।

४.
खोज डीह सब डेरा डाल, खंती खंती खने खदान,
धोलावीरा, दैमाबाद, कोलडिहवा कै कवन बिसात।

५.
बडियार बड़ा सब डीहन बीच, रामदरश कै सपना दीख,
बढ़ा बवंडर चारिहु ओर, गलियारन मा भारी सोर।

६.
सोना-सोना-सोना दीख, दाबा धरती सोना दीख,  
बाजै 'खेडा' गंगा तीर, देश भरे मा डुग्गी पीट।

७.
बड़े बड़े चैनल पे दीख, चला सीरिअल पल-पल दीख,
मेला लागा, नाच नवीस, खंडहर उप्पर धर दुरबीन।

८.
चढी कडाही ख्यातन बीच, फरफर मोछा, बैसन वीर,
सत्तावन की ऎसी पीर, सबहि धरे जस चोला कीर।

९.
ओ.वी. वैन, सफारी तीन, जेहिका द्याखौ वहु तल्लीन,
मुरदौ जागि करैं तफ्तीश, आपहि बनि गे न्यायाधीश।

१०.
बैठि झरोखे हमहू दीख, दांत निपोरे काढें खीस,
फरसा तसला कुद्ली दीख, बरम बान अस खूंटी दीख।

११.
जस-जस बाढ़े राम कहानी, निकसें पुरवा चूल्हा कील,
सुन लो ये अरदास हमारी, जनम न पाएं ऐसन दीन।  

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Thursday, October 31, 2013

ख़त्म हो शायद तमाशा

ख़त्म हो शायद तमाशा

१. 
यूं ही, नियत ने, ला दिया, इस मुकाम पे,
इक अजनबी सा रह लिया, इस मकान में। 

२. 
टटोलता ही रह गया, किस तलाश में, 
समझ नहीं यही सका, इस जहान में।  

३. 
कसमसाता जी लिया, अपने ही आप में, 
ज़ज्ब सब करता गया, ढलका न कोर में। 

४. 
दम बहुत घुटता रहा, ओढ़े लिबास में, 
चेहरा छुपाए चल रहा, इक नकाब में।  

५. 
तीर ज्यों कांपा करे, तनती कमान पे,    
तमतमाता रह गया, अपने मिजाज़ में।

६. 
जाम फिरभी पी लिया, रीते गिलास से,
जो था नहीं, दिखता रहा, बहकी निगाह में।

७.
नजरें जमाए था चला, अपने जुनून में,
दबे कदम बढ़ता रहा, सुदूर राह में।  

८. 
झंझा चलीअंधड़ उठे, बेहद अँधेरे में,   
बाती मगर जलती रही, नन्हे से ताख में।  

९.
साथ भी मिलता गया, अज़ीज़ साथ में, 
सबका जुटाया पा गया, यूं ही जहान में।  

१०.
थोड़ा यहाँ साझा किया, हमराह ! राह में,  
बाक़ी का दर्ज कर लिया, अपनी किताब में।   



११. 
छोड़ ये कूचा चला, अगली फिराक में, 
ख़त्म हो शायद तमाशा, उस पड़ाव में।  

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Wednesday, October 23, 2013

डैने खुलें

१. 

मुंशी वही, नाटक वही, किरदार क्या करें,
जो कहानी मिल गई, मंचन वही करें ।

2.
राजा वही, रानी वही, चाकर वही करें,
चारण सुहाते हैं वही, कैसे बसर करें।


3.
मालिक वही, उनकी ही शै, तकरीर क्या करें,
जो एक बार कह दिया, उतना किया करें।

४.
तौल सब उनकी रही, पासंग क्या करें,
बढी-चढी उनकी रही, घाटा यहाँ धरें। 

५.
खूंटों में बंध गए वहीं, कैसे कदम बढें,
उठते वहीं थमते वहीं, ज़ज़्बात क्या करें।

६.
आलिम वही, फाजिल वही, किससे जिरह करें,
भाग-ओ-गुणा, उन्ही का है, हिसाब क्या करें।

७.  
कातिल वही, मुंसिफ वही, किससे अरज करें,
बेहतर यही है, हम कहीं, गुमनाम हो रहें।

८. 
पिंजरा वही, फंदे वही, दाना वही करें,
बंधन हटें, डैने खुलें, पर फड़-फड़ा रहे।  
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Saturday, August 31, 2013

चल रहे

  चल रहे

१. 
रास्ता अब तो यहाँ, कोई नज़र आता नहीं 
लाख कसमें खा रहे, हमको यकीं आता नहीं। 

२. 
रहनुमा अपना यहाँ अब तो भला लगता नहीं,
बे-कटारी हाथ अब, आगे बढ़ा दिखता नहीं।  

३. 
है बाग़ वो ही, खेत वो, मंज़र मगर वैसा नहीं, 
आसमाँ नीला ही है, धरती मगर वैसी नही। 

४.
महसूल देते हर कदम, गड़हे खतम होते नहीं,
कितना झुकाएं सिर भला, बुत बने सुनते नहीं।   

५.
माफ़ है सब कुछ उन्हें जो पेट भर पाते नही, 
क्या करें उनका मगर खाते हुए छकते नहीं। 

६.
मजहब जुदा, बोली बंटी, है आदमी दिखता नहीं,
हैं जातियों में ज़ब्त हम, है मुल्क यूं बनता नही।  

७.
चल रहा यूं ही यहाँ अब दिल मगर लगता नही,
अपनी तिजारत के लिए बाज़ार अब सजता नहीं। 

८.
चलते चले हैं, चल रहे, जाएं कहाँ दिखता नहीं, 
मेले में हैं, कितने अकेले, अब सुकूं मिलता नहीं।

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Wednesday, August 21, 2013

अंतिम धार

अंतिम धार 

१. 
ये भी कैसी यारी अपनी, जीवन भर की पारी है,
दाँव चला है उनने ऐसा, अपनी भी मजबूरी है.

२ 
चिकने चेहरे भरी लुनाई, कैसी की ऐय्यारी है,
सबके भेद खुले है यारों, उनकी भी तैय्यारी है. 

३ 
गिरते पड़ते, चलते रहते, मंजिल यहाँ ख़ुदाई है, 
झोली खाली, दिल की, अपनी पूरी खुली लटाई है.   

४ 
जिस कीमत पर दांव लगा है, उसकी ना मंजूरी है, 
इसी जनम में धरम बदल लें, ये तो ना दस्तूरी है. 

५ 
गली-अली घर ऊंचे मंदर, आतिश जले उधारी है. 
चमक दमक के आगे दिखती यह कारी अंधियारी है,

६ 
जिनका जीवन कई कलप का, उनकी ये बीमारी है,
अपना ज़्यादा बीत चुका, अब थोड़ी सी मेहमानी है.

नेह लगा कर सुनो हमारी अंतिम धार कहानी है,
कहा सुना अब माफ़ करो जो हमने की नादानी है. 

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Saturday, July 20, 2013

कोई तो होगी मजबूरी,

1.

कोई तो  होगी मजबूरी, 
वरना ऐसा ! क्यों करते ?

दरश हमारा, पा जाते, 
बस, बरबस, मुस्काया करते। 

मीत मानकर हम तो अपना,
हाथ बढ़ाया ही करते।  

सोचा करते, साथ चलेंगे, 
कदम कदम, साझा करते। 

फिरभी आखिर नाहक तुमने,
कैसे तीर चला डाले ?

कोई तो मजबूरी होगी, 
वरना ऐसा ! क्यों करते ?

२. 

कोई तो होगी मजबूरी , 
वरना ऐसा ! क्यों करते ?

फेंके टुकड़ों के ऊपर,
कैसे मुंह मारा करते ? 

अपने हाथों ही अपने,
घरमें आग लगा पाते ? 

छुरी चलाते बेगुनाह पे, 
नही तनिक भी सकुचाते ? 

कोई तो  होगी मजबूरी, 
वरना ऐसा ! क्यों करते ?

३. 

कोई तो होगी मजबूरी , 
वरना ऐसा ! क्यों करते ?

एक समय चूकेगी बाती,
खूब इसे जाना करते। 

सारा जीवन हरी - हरे, 
मंतर थे जपते रहते। 

धरम, दीन, ईमान सभी,
चलती बिरिया, क्यों बदले ?

कोई तो होगी मजबूरी, 
वरना ऐसा ! क्यों करते ?
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Sunday, June 23, 2013

आखिर ये बादल क्यों फटा


 आखिर ये बादल क्यों फटा

१. 

सोच कर देखो ज़रा, आखिर ये बादल क्यों फटा, 
पहाड़, उस प्रवाह में, तिनके की माफिक क्यों बहा । 

२. 

सोचा था, ये सारा जहां, अपने हुनर से पा लिया,
फिर भला, तीरथ में वो, मंदिर में तेरे क्यों हुआ। 

३. 

भरता रहा, अपने करम से, आज वो फूटा घडा,
निगाह पर फिर भी भला, परदा तुम्हारे क्यों पड़ा। 

४. 

कुदरत को तब छेडा किया, मर्जी जो आई सो किया,  
आँगन में आई, रेत से, क्यों इस तरह डरा हुआ। 

५. 

उन घटाओं को सदा, छलिया सा, क्यों छला किया, 
देख लो, ये, किस तरह, पांसा यहाँ, उलटा पड़ा।   

६. 

चढ़ती सनक में, आप ही सदियों का सच, लांघा किया,
यक बक, भटकती मौत ने, अपना निवाला पा लिया।  

७. 

अपना ज़मीर, तोड़ कर, मिलता नही कुछ भी यहाँ, 
उस पार सब सूखा हुआ, इस ओर है, गहरा कुँवा। 

८. 

दोनों कगारों को ढहा कर, क्यों किनारों पर चढा,
सागर से आगे ये पहाड़ों तक सुनामी क्यों उठा। 

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Thursday, June 20, 2013

हाथ में, दिन चार

हाथ में, दिन चार 


१. 
आपने, कैसी यहाँ, सज़ा सुनाई है,
बोलने, पर भी, अरे, सांकल चढ़ाई है। 

२. 
ज़िन्दगी ऎसी मिली, उनकी दुहाई है, 
बे वजह रूसे हुए, कैसी रुखाई है। 

३. 
आग में जलते रहे, अपनी लगाई है, 
आपने बस्ती बखुद, अपनी जलाई है। 

४. 
वक्त को मारा किए, किसकी ढिठाई है,
आपने, किस्मत यही, अपनी लिखाई है।  

५. 
हाथ में, दिन चार हैं, कैसी लड़ाई है,
आपने, क्यों तोहमतें, झूठी लगाई हैं। 

६. 
रुक नहीं सकते यहाँ, वक्ती सराय है, 
तमाम राह थक चुके, ये शाम आई है। 

७. 
फिर उड़े भीगी हवा, सागर से आई है, 
बोल-हंस लें आज, कल, अपनी विदाई है।   

८. 
ऐसे न, रंज से भरो, इसकी दवाई है, 
दिल में तुम्हारे, प्यार से चोरी कराई है।    

९. 
इसमें नही कोई खता, हंस-हंस के आई है, 
मांग लो तेरी कसम, तुझसे ही पाई है। 

१०
बस रोज़ ही बढ़ती रही, अपनी कमाई है, 
उनकी दुआ, जो आप ही, भर-भर लुटाई है। 

११ 
हमने जतन से, एक ये, शम्मा जलाई है, 
काली वो रोशनाई, देखिए लजाई है।  

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Tuesday, June 11, 2013

अपनी ही बात ऎसी


Avdhesh Sharma Wo din yaad karo--wo hansna hansana..wo chip chip ke milna.....Lkw Univ Zim ki 20 ft Rassa chadna ..jo sab nahi chad paate the .....

अवधेश शर्मा जी के उपर्युक्त उद्गारों के नाम 


अपनी ही बात ऎसी


हम क्या बताएं वो थी, अपनी ही बात ऎसी।  
कनखी से देख लेते, इतनी ही, हद थी अपनी।  

उस पार के सहन में , हौले से दौड़ती थी । 
उस राह से गुजरते, खिडकी ज़रूर खुलती। 

धीरे से मुस्कराती, धीरे से राह चलती। 
कालेज का मोड़ आता, थी उसकी चाल थमती। 

कहती नहीं, मगर वो, भावों से बात करती।
मिलती नहीं, अलग से, थी 'क्लास' में घुमडती। 

कितना तो थी झिझकती, बस 'नोटस' मांग लेती। 
मिलता नहीं था फिर भी, बस राह जोह लेती।

बेहोश जब पडा था, सिरहाने आ खडी थी। 
था होश में जो आया, लोगों से ये सुनी थी। 

थी देर मुझको होती, 'बस' उनकी छूट जाती। 
'स्टाप' पर उतरती, मुड़-मुड़ के देख लेती। 

गुजरा है दौर कितना, लगती है बात कल की,
कैसी  सजी है दिल में, तसवीर तब की तैसी। 


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Sunday, June 2, 2013

शीतौ लागै तत्ता

शीतौ लागै तत्ता


कैसी धूम मचाए दुआरे, लेते दौड़ बलैया,
नंबर दो में पास हो गए, लहरा मारें बबुआ। 

पइसा फेंक, तमाशा देखैं, डारे कंध दुशाला, 
धरम छोड़ सब पत्तल चाटें, गाँव घरे के कुत्ता। 

लाज नहीं, कछु नीति नहीं, आँखिन काला कजरा,
घर फूंकै, अरु देश जराई, ता पर खींस निपोरा। 

ज्ञान न देखैं, ना सधुआइ, हरियर द्याखैं पत्ता,
फर्शी मारैं कइस सलामी, देखत लकदक लत्ता। 

सुमिर राम अवगुन धरें, चित्त चले अलबत्ता,
गंग अबै दूषित बहै, दिल्ली-काशी-कलकत्ता। 

काम न आपन जोई करैं, औरन परसें धत्ता,
सांसत परे बिसुरत घूमें, पग-पग खावैं धक्का।  

जैसा बोए तैसै काटें, का हो बाबू कक्का ? 
काँटा गझिन राह में रूंधे, सोहै कहाँ गलैचा ? 

देश बचाओ, धरम बचाओ, चोर भगाओ रट्टा,
लगा मुखौटा चोरै बोलै, शीतौ लागै तत्ता।

धूर उडाए भसम रमाए, तारी मार पटक्का,
महाकाल तांडव पर उतरे, गूंज उठाए ठट्ठा। 
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Tuesday, May 28, 2013

हममें ये दम कहाँ ?


हममें ये दम कहाँ ? 


१. 
दस्ता हमारे साथ मिल, चलता रहा, चलता रहा,
मिलके किया सबने हवन, हमको सुफल मिलता रहा। 

२. 
छोटा सा है, लेकिन यही, अपना बड़ा मंदर हुआ,
करता इसी की बंदगी, दिल से यहाँ सर है झुका।  

३. 
दोस्ती का क्या कहें, दिल खोल कर मिलता रहा,
खाता-बही रखा नहीं, किसने कहाँ, क्या दे दिया।   

४. 
अपना नही, कुछ भी यहाँ, सब आप का दिया, 
समिधा जुटाने में जुटा, यूं ही कलावा बंध गया। 
  
५.  
तपता हुआ गोला उठा, झकझोरता चला गया,  
अमराइयों की छाँव में, अपना वहाँ झूला पडा। 

६. 
किस धरा पे सो रहा, मधु रस चखा किया,
झरनों से, कंदराओं से, मिलती रही दुआ।  

७. 
किस गाछ तर शीतल हवा, नदियों का जल छका, 
एहसान हम पे जो किया, होगा यहाँ कहाँ अदा।  

८ 
यह तो बताओ क्या खता, देते क्यों बद दुआ,
आपकी बगिया में, वो प्यारा सा गुल खिला। 

आप ही ने तो हमें, दम साध कर गढ़ा, 
ले कर सहारा, आपका, दिन रात चल सका।  

१०
कितना भी अब जतन करें, होंगे नहीं जुदा,
हम तो गले लगाएंगे, सब को बना सखा। 

११   
समझा मुझे कुछ काम का, सबका है शुक्रिया,
छप्पर चढ़ाया आपने, हममें ये दम कहाँ ? 

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Friday, May 24, 2013

ज़िन्दगी का दायरा




 ज़िन्दगी का दायरा 



पौ खुली प्राची में पर वो ही नज़ारा दिख रहा,

बांह में खंज़र छुपाए, खुदकुशी पे वो अड़ा। 



कैसे भला आए समझ, आँखें हैं पर अंधा हुआ
,
अपना चमन ही सींचता, तेज़ाब से, पागल हुआ।  



छोड़ो चलो आगे चलें, शायद फ़साना हो जुदा,

कब तलक जोहा करें, होने लगी ऊबन यहाँ। 



क्या करें सबको पता कैसे ज़माना जल रहा,

पास में दरया भरा, वो भी मगर उबल रहा। 


खूंटों में बंध के कब रहा ये ज़िन्दगी का दायरा,

कितने बगूले उड़ गए, किसका रहेगा आसरा। 



दौर ये फितरत का है, मिलता नहीं इसमें मज़ा 

रस्म जो पल्ले पड़ी, कब तक निभाए जाएगा। 

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Monday, May 13, 2013

ठहरा है कारवां



ठहरा है कारवां


आओ ज़रा, थम लें यहाँ, कैसी बहे हवा, 
आया नया, मुकाम अब, ठहरा है कारवां। 

सूखा हुआ, मरू सामने, चश्मा मिला नया, 
कीकड़ का घेर ही सही, नम है यहाँ धरा।  

ढल चली है सांझ पर वितान सज गया,
खामोश आके गुफ्तुगू की बात कह गया।  

मंजिल अभी तो दूर, इक पड़ाव मिल गया,
काली सियाही रात में, अलाव जल गया। 

तारों का जाल सज गया, धुंधला सा आसमाँ,
सपनों की खेप चल पड़ी, होगा सुबह को क्या ?   

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Thursday, April 25, 2013

हवाल सब सुनाएंगे, क्या क्या हुआ किया


हवाल सब सुनाएंगे, क्या क्या हुआ किया  
२६ मार्च - २४ अप्रैल२०१३ 

1. 
बेड़ा चला था मौज में, दरयाव बढ़ गया,
अपनी कहानी ने नया, पन्ना पलट लिया।

2. 
डांड़ा हमारे हाथ से, सहसा छटक गया,
बेड़ा भटक के, आप के, रेते पे आ गया।     

3. 
बस में नहीं अपने रहा, लहरों ने ये किया, 
यूं ही करीब आप के, लमहों ने ला दिया।
  
4.   
बेकार बाज़ू हो गए, भंवरों ने ये किया,
ऐसा किया, ये जिस्म-ओ-जां, जख्मों से भर गया।  

5. 
अपना नहीं कुसूर कुछ, टसकन ने ये किया,
संदल की आस ने हमें, ये दर दिखा दिया। 

6. 
मिल कर जुदा होते गए, राहों ने ये किया, 
राग-ओ-कसक थमा दिया, आगे चला गया। 

7. 
हम तो महज चलते रहे, किस्मत ने तय किया, 
जिस ओर की चली हवा, उस ओर उड़ लिया। 

8. 
हमने न कुछ भला किया, न कुछ बुरा किया,
मंज़ूर-ए-दौर जो हुआ, उतना ही कर लिया । 

9.  
अपने ललाट  पे लिखा, वो पुन्य पा लिया,
पाप भी किया, मगर, दस्तूर भर किया। 

10. 
गीली जमीन पर अभी, कुछ ही कदम बने, 
उस ठौर पर, बालू चरो ने, घर बना लिया। 

11. 
दो-चार पल ही क्या मिले, सुध ही भुला गया,
इक कहानी, अनकही, सुन कर, सुला गया। 

12. 
हम तो संभल के होश में, आए, ये क्या किया, 
अपने मुकाम का पता,  तुमने बदल दिया।  

13. 
ना राज़ कुछ रहा, न राज़-ए-दार ही रहा,
बस्ती यही रही, मगर गुमनाम हो गया। 

14.
दावा नहीं रहा, न दावेदार ही रहा,
 तहरीर क्या लिखाएं, वो काजी चला गया। 

15. 
ना दूर हो सका, न बगलगीर ही हुआ,
अपने अकेले द्वीप का, संगीत हो गया। 

16
वक्त ने हमको यहाँ, क्या क्या दिखा दिया,
अपने अजाने अक्स का, दीदार पा लिया। 

17.
वक्त-ए-दौर वो भी था, हमको मिला गया,
इस सफ़र में आप का, रहबर बना दिया।  

18.  
बदला है वक्त-ए-दौर फिर, खेमा उखड़ गया, 
डेरा, पडेगा, अब कहाँ?  लो फिर भटक गया। 

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Tuesday, March 26, 2013

तोहरै सहाय


१ 
यै 'फागुन', ए 'बाबा'! तोहरै सहाय। 
उज्जर चदरिया, रंगाईल बनाय, 
यै 'फागुन', ए 'बाबा'! तोहरै सहाय। 

२. 
कैसन बयरिया बा, हरिना कुदाय,
तपसिया में रहली, आसन डोलाय।

३. 
निमिया कै पाती, गइल पियराय,  
हियरा ह हल्लुक, पवन पत्ताय।  

पत्ताय = हवा में पत्ते की तरह लहराना 

४. 
कांची कोपलिया, सगरो सजाय,
मुवलौ लतरिया, मूड़ी उठाय। 

कांची = कच्ची, कोपलिया = कोपल, सगरो = सब जगह, मुवलो = मरा हुआ, लतरिया = लतर, मूडी = सिर  

५. 
टहकै ल सेमल, लाली लहाय,
चिरई स चिहुंकै, जियरा बहाय।   

टहकै = चटक 

६. 
मह मह ह मोजरा, महुआ चुआय,   
बोरसी क रखियौ, बहुर सुलगाय।   

बोरसी = बुझी हुई आग राख से दबा कर रखने वाला पात्र 

७. 
कैसन पियसिया, पियले गढाय,
केतनौ छकावै, न रचिकौ अघाय।  

पियसिया = प्यास, पियले = पीने पर, रचिकौ = तनिक भी, अघाय = मन भरना 

८. 
आवैं पहुनवा, झूरै ना जांय,
रंगल गुलाबी, हरियर सुहांय। 

पहुनवा = मेहमान/ दामाद, झूरै = सूखे 

९. 
बीड़ा रंगीला, मीठा चभाय, 
पल्लू उमेठे, गारी गवाय।  

१०. 
जोगिया ब बाना, जटा गोलियाय,
भसम तन रचाये, फिरहू रसाय। 

गोलियाय = साधुओं की गोल ऊंची जटा, रसाय = रसयुक्त होना 

११. 
मसाने रमावैं, निरल्ले सधाय,
फगुवा बरावैं, ऊ माथे ठठाय। 

मसाने = श्मशान, निरल्ले = एकांत, बरावें = बचाना, ठठाय = ठहाका मार कर हंसना  

१२  
मनवा न ठहरै, तड़कै अगार, 
बछरू ल लहकै, पगहा तोड़ाय। 

तड़कै = उछल कर उस पार जाना, अगार = आवास, बछरू = बछड़ा, पगहा = रस्सी, तोड़ाय = तोड़ कर छूटना 

१३
अंगरवा स दहकै, टेसुआ फुलाय,
मुड़ेरवा से मारैं, धनुही तनाय। 

अंगरवा = अंगार, दहकै = लाल शोले की तरह जलना, टेसुआ = टेसू/पलाश , फुलाय = फूलना, मुड़ेरवा = मुडेर, धनुही = छोटा धनुष (आँख की धनुही जैसी उठी भौंह)

१४. 
फुद्कै फुलसुन्घिया, बुलबुल अनार,
कुंजन मा चहकै, अंखिया नचाय। 

फुलसुन्घिया = फूल सूंघने वाली नन्ही चिड़िया

१५. 
रत रात रानी गमकै, बगिया महाय,
पकरिया कै कल्ला, नियारे सजाय। 

रत = रमना, रत-रानी = रातरानी का पौधा, महाय = महकना, पकरिया = पाकड़ का पेड़, कल्ला = नयी उगी पत्तियाँ, नियारे = न्यारे 

१६. 
चन्दा ह चटकल, छिटकै उजार,
रजनी नहावल ह, पियरी छहाय। 

१७. 
नयके न मानैं, नसेनी लगांय,
सूधे पुरनियन पै, किरची चलांय। 

नयके = युवा, नसेनी = सीढी; किरची = कांच का नोकीला टुकडा

१८. 
लरिके महल्ले के, लक्कड़ जुटांय,   
टोले मा होरी, मलंग मस्ताय। . 

१९. 
होरियार गावैं, घर-घर दुवार,
विजयसाल ठनकै, फगुआ फुहाय।  

विजयसाल = शाल की लकड़ी का ढोल जैसा वाद्य, फुहाय = रुई के फाहे जैसा 

२०. 
सरोपा भिझोवें, रहिया छेंकाय,
चारिह्यून मुहानी, गगरिया फोराय। 
सरोपा = सिर से पैर तक, भिझोवें = भिगाना, रहिया = रास्ता, छेंकाय = रोक कर, चारिह्यून मुहानी = चौराहे के चारों रास्तों के प्रारम्भ, गगरिया = गगरी/घडा, फोराय = फोड़ना 

२१.   
भीजल कमरिया, घमवा सुखाय,
जुड़ाइल ह भित्तर, रहि रहि ठराय।

भीजल = भीगी हुई, कमरिया = कम्बल, घमवा = धूप, जुडाइल = ठंढ लगना

२२.  
रंगाइल ह मेहंदी स, चटकय चढ़ाय,  
रचि-रचि रचाइल ह, पोरवा पिराय,    
यै 'फागुन', ए 'बाबा'! तोहरै सहाय। 

पोरवा = पोर/ जोड़ 

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