Sunday, November 24, 2013

वास्तु गढ़ाएं नए नए

वास्तु गढ़ाएं नए नए

१. 
चारों खम्भे टूट चुके हैं, मंदिर सारे ध्वस्त हुए,
प्राण हीन देवता हुए हैं, भू लुंठित सब पड़े हुए।  

२. 
दिशा छोड़ दिक्पाल भगे हैं, द्वारपाल हैं दरक गए, 
वेदी भग्न, कपोत उड़े हैं, भगत विचारें डरे हुए।  

३. 
भोग पुजारी लूट रहे हैं, मंदारक पर खड़े हुए,
वे ही ललाट पर शोभित हैं, रथिकाओं में जमे हुए। 

४. 
मंडप में 'लीला' चलती है, रक्षक भक्षक बने हुए, 
अंतराल में व्याल  बसे हैं, गर्भनाल से बंधे हुए।  

५. 
अंदर 'महिष' विराज रहे हैं, 'गौरी' के दिन चले गए, 
घट-पल्लव विष बुझे हुए हैं, चन्द्रशिला पर टिके हुए।  

६. 
कुटिल पताका फहराते है, शिखर-शिखरिका चढ़े हुए, 
उनकी ही महिमा बजती है, बीज बिजौरा भरे हुए।  

७. 
अन्धकार अब सर्वभद्र है, 'बिसकर्मा' - 'मय' ठगे हुए,
स्थपती भौंचक्क खड़े हैं, सूत्र-धार औचक्क हुए।  

८. 
कोई और साधना नहीं है, मंत्र सभी तो भ्रस्ट हुए, 
नई तपस्या ही उपाय है, वास्तु गढ़ाएं नए नए।  

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Saturday, November 9, 2013

थोडा ही सफ़र बाक़ी है

थोडा ही सफ़र बाक़ी है

November 9, 2013 at 6:07pm

१.
हम दूर हुए लेकिन, हिचकी तो अभी आती है,
कुछ आदतें पुरानी, यूं ही न छूट पाती हैं।




कुछ खुशबुएं हैं ऎसी, हवाओं में बसी आती हैं,
साँसों में भिनी रहतीं, ज़ेहन में भरी जाती हैं।




कुछ लीक पड़ीं गहरी, ज्यों संग पे उकेरी हैं,
वो रास्तों की घुमरी, माथे में घूम जाती हैं।   


कुछ गुफ्तुगू हैं ऎसी, हौले से गुनगुनाती हैं,
सोते से आ जगाती, दस्तक सी बजाती हैं।  




अक्सर ही तेरी यारी, शिद्दत से उभर आती है. 
जब बैठते अकेले, साए सी चली आती है।


ये वो 'घड़ी' तुम्हारी, ये भेंट गज़ब ढाती है,  
जो बीत गई उनकी, यादों की गहर लाती है।




ये प्यालियाँ रुपहली, भावों भरी सजा दी हैं, 
खीर खाने को यहाँ, दिल से सटा रख्खी हैं। 




ये चादरें उजाली, कांधे पे ला ओढ़ा दी हैं,
ज़ज़बात में सहेजी, ला के गले सजा दी हैं।




चादर बुनी कबीरी, तुमने मुझे नवाज़ी है,
कैसे निभेगी इसकी? ये फिक्र बड़ी भारी है।



१०
शाम ढल रही अब, उस पार वो किनारी है,
गोधूलि छा रही अब, गीता हमें थमा दी है !




११.
अगले गए हैं जिस पथ, ये उसकी बानगी है,  
ये है मुझे तसल्ली, थोडा ही सफ़र बाक़ी है।

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Monday, November 4, 2013

बरम बान अस खूंटी दीख

बरम बान अस खूंटी दीख

१.
कांकर पाथर हेरत भाय, जीवन बेरथ गइल बिताय,
इहाँ सबै सब हौ निःसार, 'माया' सांचौ अपरम्पार।

२.
विश्व ख्याति कै लम्बरदार, मिश्रा-वर्मा-लाल सुजान,
साधे केतनौ तीर कमान, धान पसेरी तुले तमान।  

३.
बीछी काटी, मंतर भूल, निकसे फणधर कारे कूट, 
काँटा, कोना, दमदम कीच, कहाँ परे ना कोऊ पूछ।

४.
खोज डीह सब डेरा डाल, खंती खंती खने खदान,
धोलावीरा, दैमाबाद, कोलडिहवा कै कवन बिसात।

५.
बडियार बड़ा सब डीहन बीच, रामदरश कै सपना दीख,
बढ़ा बवंडर चारिहु ओर, गलियारन मा भारी सोर।

६.
सोना-सोना-सोना दीख, दाबा धरती सोना दीख,  
बाजै 'खेडा' गंगा तीर, देश भरे मा डुग्गी पीट।

७.
बड़े बड़े चैनल पे दीख, चला सीरिअल पल-पल दीख,
मेला लागा, नाच नवीस, खंडहर उप्पर धर दुरबीन।

८.
चढी कडाही ख्यातन बीच, फरफर मोछा, बैसन वीर,
सत्तावन की ऎसी पीर, सबहि धरे जस चोला कीर।

९.
ओ.वी. वैन, सफारी तीन, जेहिका द्याखौ वहु तल्लीन,
मुरदौ जागि करैं तफ्तीश, आपहि बनि गे न्यायाधीश।

१०.
बैठि झरोखे हमहू दीख, दांत निपोरे काढें खीस,
फरसा तसला कुद्ली दीख, बरम बान अस खूंटी दीख।

११.
जस-जस बाढ़े राम कहानी, निकसें पुरवा चूल्हा कील,
सुन लो ये अरदास हमारी, जनम न पाएं ऐसन दीन।  

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