Friday, May 26, 2017

जोहा करेंगे



जोहा करेंगे

आते शहर में रहते, आ कर के चले जाते, 
हमको पता न लगता, ना इन्तिज़ार करते।

अपने में मगन रहते, ऐसा तो नहीं करते,          
आहट कोई भी सुन कर, यूं तो नहीं हुड़कते। 

सबको बता के आए, यह आस क्यों जगाए,                         
क्या बात है कि आके, मिलने भी नहीं आए।  

इतना भी क्या तकल्लुफ, यूं दूर-दूर रह के, 
थोड़ा सा समय रखते, संग-साथ रह के जाते।  

परदा तनिक सा हटता, दो-चार बात कर के,  
सुन कर सुना के अपनी, दूरी घटा के जाते। 

गर वक्त की कमी थी, हमको ही बुला लेते, 
हिचकी जो आ रही है, कमतर करा के जाते।  

अब जाने कब जुड़ेगा, यह योग आसमां में,
होंगे उन्ही दरों पर, टहलेंगे साथ मिल के।  

गिनती के दिन बचे हैं, साँसों की पोटली में।  
जोहा करेंगे फिर भी, किस्मत की करवटों में।   

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Thursday, May 18, 2017

अक्षय-निधि

अक्षय-निधि
१.
पाय गए, स्नेह धन,
भित्तर लै सिहराय,
ढरकत जाए गीत मय,
घट उप्पर उपराय।
२.
बरबस पाए या निधी,
राखै हिय चबदाय,
हारिल जस लकड़ी गहे,
खुले गगन पत्ताय।
३.
ऐसी लागी लाग यह,
लागी रहै लसाय,
जब लागै चुकता रही,
फिर लागै छलकाय।
४.
डूब-डूब मधु मालती,
होवैं अस मद-अंध,
जागत दुनिया में फिरै,
झिर-झिर विहरै संग।
५.
बरतन लागै कृपन सम,
 राखै सबते गोय,
 पट खोलै एकंत में,
गिन-गुन परतै टोय।
६.
डरपत मन सोचा करे,
कैसेहु छीज ना जाय।
फिकिर सतावै अब हमें,
कस संचैं सरियाय।
७.
समय बली या जगत में,
सबकुछ लेत समाय,
मोरे बिधाना अस करौ,
अक्षय-निधि बन जाय।
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Saturday, May 13, 2017

खेवनहार

खेवनहार 

जीवन रस आवा करैं मिले-जुले एकसार,  
मन-व्याकुल डूबै उबर, आर न पावै पार।  

कैसा इस संसार मेंचला करे व्यापार ?
तनुक राह अटपट लगैबदलै सब व्यवहार।

बड़े पुरनिया कहि गए, तबौ नहीं एतबार, 
जब तक अपने नैन ते, नहिं अवलोकहिं आप।  
  
पढ़ा सुना गुनतै रहैंसमझ  पावैं सार,
नियत घड़ी आवै तबैआखर हों साकार।

कभी कभी ऐसा घटैअकिल  पावै पार, 
सब कुछ लागै तयशुदामानै बारमबार।

हम समझैँ हम कर रहेकरता सब करतार,
डाँड़ गहावै  हाथ मेंखेवै खेवनहार।

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(मई २०१३ - मई २०१७)

Tuesday, May 9, 2017

कभी ना कभी

कभी ना कभी
नेह रखना बचा कर के थोड़ा अभी,
वक्त रखना संजो कर के थोड़ा अभी।
आएंगे, एक दिन, तुमसे मिलने कभी,
बैठ कर, बात करने को, तुमसे कभी।
घाट पर जा के नइया लगेगी कभी,
रेत पर रात फिर से बिताने कभी।
फिर से नन्हे घरौंदे बनेंगे कभी,
गीली बालू पे चुप-चुप चलेंगे कभी।
बिना बोले भी बातें करेंगे कभी,
खुल के हंसते हंसाते रहेंगे कभी।
ये है पूरा भरोसा मिलेंगे कभी,
ये ही चाहत सहेजे कभी ना कभी। 
नेह रखना बचा कर के थोड़ा अभी,
वक्त रखना संजो कर के थोड़ा अभी। 

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Saturday, May 6, 2017

वो बात

वो बात जो उनसे कहनी है,
सलाम करते हैं, नज़र करते हैं।

बड़े लोगों के क्या कहने,
जो कहते हैं वो करते हैं।

पकड़ कर एक जुमले को,
'पितामह' बन के जीते हैं।

उनसे बेहतर वो छोटे हैं,
जो गलती मान लेते हैं।

कही जो बात कुछ उल्टी,
तो नुक्ता ठीक करते हैं।

दोस्त

किसी मंदिर में देवता बना के न बिठा देना !

क़दर दोस्तों के नज़रिए की कीजिए बेशक, 
मगर ऐसी कि वास्ता बराबरी का रवां रहे।
डर लगता है सजा कर करीने से न रख देना, 
सराहना ठीक है लेकिन यारी बनाए रखना।
किसी मंदिर में देवता बना के न बिठा देना !

हो जाता है गुमान


हो जाता है गुमान कुछ लोगों को अपनी खुद्दारी का कुछ ऐसा,
कि अपनी ख़ुदग़रज़ी में भी गलत होने का एहसास नहीं होता।

समझते हैं वही सच है मुकम्मल जो उनके ज़ेहन में पलता है,
बकिया के सब का वज़ूद उनकी ही ज़हनियत से तुलता है।