Thursday, June 20, 2013

हाथ में, दिन चार

हाथ में, दिन चार 


१. 
आपने, कैसी यहाँ, सज़ा सुनाई है,
बोलने, पर भी, अरे, सांकल चढ़ाई है। 

२. 
ज़िन्दगी ऎसी मिली, उनकी दुहाई है, 
बे वजह रूसे हुए, कैसी रुखाई है। 

३. 
आग में जलते रहे, अपनी लगाई है, 
आपने बस्ती बखुद, अपनी जलाई है। 

४. 
वक्त को मारा किए, किसकी ढिठाई है,
आपने, किस्मत यही, अपनी लिखाई है।  

५. 
हाथ में, दिन चार हैं, कैसी लड़ाई है,
आपने, क्यों तोहमतें, झूठी लगाई हैं। 

६. 
रुक नहीं सकते यहाँ, वक्ती सराय है, 
तमाम राह थक चुके, ये शाम आई है। 

७. 
फिर उड़े भीगी हवा, सागर से आई है, 
बोल-हंस लें आज, कल, अपनी विदाई है।   

८. 
ऐसे न, रंज से भरो, इसकी दवाई है, 
दिल में तुम्हारे, प्यार से चोरी कराई है।    

९. 
इसमें नही कोई खता, हंस-हंस के आई है, 
मांग लो तेरी कसम, तुझसे ही पाई है। 

१०
बस रोज़ ही बढ़ती रही, अपनी कमाई है, 
उनकी दुआ, जो आप ही, भर-भर लुटाई है। 

११ 
हमने जतन से, एक ये, शम्मा जलाई है, 
काली वो रोशनाई, देखिए लजाई है।  

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