Wednesday, March 26, 2014

खरहा




दुबका हुआ है आस का खरहा वहीं, चाँद गलता जा रहा,   
रात होती जा रही कितनी घनी, दीपक टपकता जा रहा । 

अंटी में छुपी कौन सी वो थी जड़ी, सब खुलासा हो रहा,   
हो गए भैया बड़े, जीजी बड़ी, उनका तमाशा चल रहा ।  

आवाक सी है देखती जनता खडी, कैसे जमूरा छल रहा,  
रास्ता दिखता नही मंज़िल कोई, बस एक नटवर दिख रहा।  

तुमसे जो दावा किया था काज़ी, कागज़ कहीं वो उड़ गया,   
काबिले बात रह गई किताबी, नावां ही सबकुछ हो गया।     

भूल से भी आ गया मन्दिर कभी, बन देवता पुजवा रहा,  
ले नाम जन-जन सब कही, बाज़ार में बेचा किया। 

शक या सुबहा, रहा नहीं कोई, बदतर ज़मना हो गया,     
नकाब में रहता नही है अब कोई, सब सरासर हो रहा ।  


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Sunday, March 16, 2014

उज्जर होरी

उज्जर होरी 

१. 
एहि फागुन बाउर भए, देखौ खेलैं रंग, 
उज्जर झोरी रंग की, उज्जर थोपे अंग।  

२. 
काजर कोठरि धंसि रहे, पउडर थोपे गाल, 
बनि हँसि होरी खेलते, झप्पी भरे गुलाल।  

३. 
सबै रंग परचम उड़ें, सबै रथन के मौर, 
उज्जर उज्जर उच्चरहि, करिया दिल के कोर।   

४. 
जाति-पांति औ धरम की ढपली बाजै जोर, 
मुंह में राम रहीम लै, छूरी साजे लोग।  

५. 
बहुरुपिया जो साल भर बदला करते रंग, 
बदरंगी शोभन लगी, दल बदलत ही चंग।  

६. 
एहि बिरिया नारा लगै, हरिद्रोहिन कै नास,
सिंह बने नर आ रहे, सबको मिलिहै त्राण।  

७. 
बरस बरस बीता किए, होरी बारत भाय, 
बार ना पाये होलिका, फगुआ होरी गाय।  

८. 
नए रूप राछस धरे, चढ़ि-चढ़ि गरजें मंच,
उनकी ही महिमा अही, बाजत हैं सब लंग।  

९.
सब कोई सब कुछ लखै, मगर रंग की रीत,
बार-बार कालिख लगै, गले लगावैं रीझ।  

१०.
काशी मथुरा अवध पुर, टेसू सेमल लाल,  , 
होरी के रंग भीजते, खेलें रघुबर नन्दलाल।

११. 
मन में उमगन फिर बहै, फागुन मारै जोर, 
भला बुरा अलगाय कै, खेलेंगे फिर भोर।    
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