Tuesday, March 29, 2011

याद



याद

राकेश तिवारी


पूंजी पायी याद की, चलती चलती आय/
भक भक करती रेल सी, टेसन टेसन जाय/१/

जितनै भागै याद से, उतनै सकिलत आय/
थोरै अवसर पाए जो, जेहन में मड़राय/२/


भरी सभा में पैठती, तनिकौ नहीं लजाय/
सोवत जागत ना तकै, दबे पाँव चलि आय/३/


मनवा में लागै भली, हौले से सिहराय/
मानो कोमल पंख से, कोई तन सहलाय/४/


रह रह ऐसा छेड़ती, मन ही मन मुस्काय/
राह छोड़ चलने लगे, मंजिल से भटकाय/५/


याद महकती माधुरी, मह मह करती आय/
दूरी योजन देश की, पल भर में लपटाय/६/


बालापन की याद वो, नरम नरम सी आय/
जैसे शाख प्रशाख पर, किसलय नई सुहाय/७/

याद गुनगुनी धूप सी, कालेज की जब आय/
मंद पवन सी सुरसुरी, गुद-गुद करती जाय/८/

याद पीय की टीसती, छन छन आवे जाय/
समझु न आवे आपु तो, बिरहन बूझौ जाय/ ९/

महतारिन को याद वो, जीवन भर तड़पाय/
लरिका बसे विदेश में, लरिकी करी विदाय/१०/

आँखिन में सुधि बस रही, खुली बंद में आय/
तड़का  मारैं दाल में, ह्रदय मरोड़ा खाय/११/

याद सुनहरी लीक सी, युवा काल की आय/
चारों धाम में घूमती, चलती है पिछुआय/१२/

उस ज़ालिम की याद वो, अंतर नहीं अमाय/
मानो बैरी हुमचि  कै, छूरी रहा चलाय/१३/


ऐसी दुखती याद वो, नश्तर मनो चलाय/
पल पल खुरचै भीतरै, काटि कलेजा खाय/१४/


जीत हार की याद तो, सदियों तक सुलगाय/
रार बढ़ावै  जंग में, इतिहास बदलती जाय/१५/


सतकरमन की बेल तो, यादों में लहराय/
वीर शहीदी याद पर, माथा झुक झुक जाय/१६/

याद सलोने रूप की, लहरि लहरि कै आय/
पुनि पुनि सम्पुट सी उठै, बंशी बोल सुनाय/१७/

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27-29 March, 2011

Tuesday, March 15, 2011

होली में


होली में

राकेश तिवारी 

फागुन की झोली से ले लो, मन माने रंग होली में. 
नाचो  गाओ रंग उड़ाओ निकल पड़ो अब टोली में.  

महक रहा है सारा जंगल मगन हो रहा होली में.
टेसू सेमल रंग उड़ाते महुआ उतरा तन मन में. 


जला बैर होलिका के संग बांटो मस्ती होली में.
रंज दुश्मनी भूल भुला कर अंक लगा लो जोड़ी में.

भंग  घुट रही घाट किनारे देखो फिर अब होली में.
बिन छाने ही मस्त हो रहे होरी गावें गावन में.  

लगा अबीर गुलाल गाल पर हाथ जोड़ लो होली में.
जैसी चाहो मन की कह लो, बातें जरा ठिठोली में.

पिछले रंग चटक हो छिटके मन के अन्दर होली में.
चलो चलें उस ठौर पे फिर से रंग लें मन को यादों में.  

याद आ रही वही शरारत करते रहते जो होली में. 
चुपके से टाइटिल लिखते फिर हँसते रहते कोने में. 

कुछ लोगों को तीखे लगते तुनके रहते होली में.
रस ले ले कर हम सब कहते बुरा न मानो होली में. 



सभी मित्रों को होली की शुभ कामनाएं 

Wednesday, March 2, 2011

अपने ही मन की कुछ परतें


अपने ही मन की कुछ परतें  


 राकेश तिवारी

 अपने ही मन की कुछ परतें कितनी अनजानी रहती हैं
अपने ही बारे में अपने को भरमाए रहती हैं. 

इनकी माया समझ ना आये नए रंग बिखराती हैं
अपने भीतर ही छुपे हुए अनजाने रूप दिखाती  हैं.

लगता है सब कुछ त्याग दिया, लालच मन में पनपाती हैं,
जिनको लगता है भुला दिया उनकी चाहत ले आती है.

जो बसे हुए दिल के करीब उनसे दूरी बनवाती हैं
जिनसे पूरी खुट्टी कर ली उनको करीब ले आती हैं.

जिनको कोसा पानी पी पी उनसे भी नेह कराती है,
मार गए निष्ठुर ठोकर, माला उनकी डोलवाती हैं.  

कोमल मन पत्थर कर देतीं, पाथर मोम बनाती हैं.
वीरों को हतप्रभ करतीं कायर को वीर बनाती हैं. 

महिमा मंडित राजाओं से सिंहासन छुड़वाती हैं
राज-पाट का मोह कटा कर वीतराग समझाती हैं.

जिनको दुश्मन समझा अपना उनको भी हृदय लगाती हैं,
जिनको शिला समझते थे उनको ही शीश नवांती हैं.

अपने ही मन की कुछ परतें कितनी अनजानी रहती हैं 
अपने ही बारे में अपने को भरमाए रहती हैं.
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