Saturday, April 28, 2012

चलने की तैयारी.


चलो करें अब, चलने की तैयारी.



अमियाँ तोडीं, बेरी झोरी, मटर चुराई, भर-भर झोली,

सपनों वाली, उमर पतंगी, बचपन खेले, भरी दुपहरी.



घूम-घूम कर, जंगल देखे, देखी खंदक-गहरी,

महल-अटरिया, गाँव-नगरिया, छानी दुनिया सगरी.



नोकीले पत्थर, बह-बह कर, बन गए चिकनी पिंडी,

तब धारा को, जान सके कुछ,  तय कर के पूरी दूरी.



पलट के काटा जिन लोगों ने, डाली उन पर गलबांही,

लड़ते  थे  जीवन  भर  जिनसे, उनसे भी कर ली यारी.



जिस तन पर  मिलती थी, हमको, राह चले शाबाशी,

घेर रहीं  हैं उसको भी अब, कैसी कैसी बीमारी.



जितनी आस बची है अपनी, थोड़ी कर लें पूरी,

बाक़ी सौंपें उनकी वारी, जो खेलैं अगली पारी.



क्या हारेंगे, क्या जीतेंगे, है ही क्या अब तो बाक़ी,

आओ खेलें पूरी लौ से, इस  फड़ पर अंतिम बाज़ी.



बाग़ लगाएं, बिरवा रोंपें, देंगे मिठवा फल चारी,

बारी-बारी, सब की बारी, अब है अपनी भी बारी.



दिन बीता, अब सांझ घिरी, अब वीतराग की बारी,

कैसी देरी, चलो करें अब, चलने की तैयारी.

-----

Thursday, April 26, 2012

पश्चिम से आयी मोहिनी


पश्चिम से आयी मोहिनी

१. 
किस कदर अंधड़ उठे, पछुआ पछाड़ें मारती, 
सागर में यूं लहरें उठें, सारे किनारे तोड़ती. 
२. 
उठ रहे कैसे बवंडर,  स्याह रातें घेरती,  
अपने घर की रोशनी, दहलीज़ पर दम तोड़ती.
३. 
ये पौध क्यारी में उगी, अपनी ज़मीनें छोड़ती,
वन सघन कैसे हरे, गमलों में ये तो फूलती. 
४. 
अब छोड़ वीणावादिनी, उलुकावली को पूजती, 
पश्चिम से आयी मोहिनी, पूरब को कैसी मोहती. 
५.
चीन, भारत या पड़ोसी, सब पे जादू फेंकती,
तोता - मैना ये बना, पिंजरे में सबको डालती. 
६. 
खाती-पीती. मौज की, ज़िंदगी दिन चार की, 
आठों दिशाओं में इन्हीं की, दुन्दुभी अब गूंजती. 
७.
है किसी भी मोल सब, पाने की यह अंधी गली,
डूब जाने की है हसरत, ये मुकम्मल ख़ुदकुशी.
८. 
गर, यही चलता रहा, आकाश वाँणी बोलती, 
धरती ये खूंदी जाएगी, साया हवा में डोलती. 
९. 
तोड़ कर तंद्रा नहीं गर, अब रवानी जागती,
इतिहास की परतें हटा, फिर से गुलामी झांकती.
१०.
 इसके आगे भी जहाँ है, बात है यह गाँठ की,
हमने नहीं, पुरखों कही, है बात कितनी कीमती. 
११. 
चार ही पुरुषार्थ हैं, गिनती के आश्रम चार ही,
बात पुख्ता है यही, सदियों की अजमाई हुई, 
-------
13-14 APRIL 2012

Sunday, April 1, 2012


चढ़ल महीना चैत

१. 

चढ़ल महीना चैत कै, गये दिवस नौ बीत,
बजत बधावा अवध में, भुइं प्रकटे रघुवीर. 
  
२. 
बाढ़न लागे दिन अबै, घिरै सांझ अब देर,
घाम परे जागन लगे, उमगि चले तरु फेर.  

३.
महमह रतरानी महै, बेला महकै रात,
छाई दूधिया चांदनी, कोयल कूकै डार.  

४. 
मुनरी-चुनरी, सजि-संवरि, साँवरि साजे केश,
बाग-बनन, मधु मालिनी, चुनि-चुनि काढें टेस. 

५.
चैती गावैं मगन मन, पीय मिलन चित आस, 
चलत-चलत रुकि-रुकि चितैं, हिय चितवत हलकान.  

६.
चैत वही उमगन वही, मन में पर सन्ताप,
रावण बहु बाढ़े वही, करौ वीर सँहार. 
-----