Wednesday, October 25, 2017

शरद सुहावन

संझा शरद सुहावन आये, गाढ़े मधुर मधुर मधुराय,
फूलै धवल राग गहराये, मादक सत-पर्णी मुस्काय।

Thursday, October 19, 2017

मौसम बदला

Rakesh Tewari
मौसम बदला सब कहीं, फूल लगें सब ठौर,
मौसम बन में अस बना, लदे बबूलहुँ फूल।

गुन-गुनाने का

Rakesh Tewari
गुन-गुनाने का
भोरहरी शरद की आयी, खिला है झाड़ चम्पा का,
झरे हैं फूल धरती पर, करें सिंगार देहरी का।
चहलकदमी को मन मचले, गलीचा नरम दूर्वा का,
झलकती शीत की चादर पे तलुए गुदगुदाने का।
हवा में ठंढ की खुनकी, अगौना नए मौसम का,
ठुनकती धूप से बचते बचाते घूम आने का।
घुला है ज़हन में ऐसा, नशा सा खुशगवारी का,
बना है वक्त ही ऐसा तनिक सा टहल जाने का।
बहाना कोई बनना चाहिए, बस बात करने का,
दबे क़दमों की आहट में, गमकते बोल सुनने का।
कि, मौक़ा कोई मिलना चाहिए बाज़ू में चलने का,
करीब आते हुए थोड़ा सा यूं ही गुन-गुनाने का।
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बाती बाली नेह

बाती बाली नेह की, घिउ अगरू लपटाय,
दूरी लाँघि दिगन्त की, जग सगरो महकाय।

बाती ते बाती मिली, बाढ़ै घन अति सोय,
भरि भरि पायी नेह निधि, बड़भागी अस कोय !!!!
मितवा !!! बड़भागी अस कोय !!!!

Image may contain: night and fire

Tuesday, October 10, 2017

सोन चिरइया

Published by Rakesh TewariOctober 2 at 8:12am
सुबह सबेरे सोन चिरइया, गीत माधुरी सुना गयी,
फुलवारी में चिहुँक हृदय में रस संचरित समाय गयी।

आपके लिए:

Published by Rakesh TewariSeptember 1
आपके लिए:
समय सहारे वारि कै, उड़ा करौ निर्द्वन्द,
भूले सब संसार में, मिलै परम आनन्द !!!!

मलय देश में (2): अहमकाना कोशिश

Rakesh Tewari added 2 new photos.
Published by Rakesh TewariAugust 19
मलय देश में (2): अहमकाना कोशिश
सोच-समझ कर आए थे - अपने मुल्क से दूर कतई अनजाने मलय देश (मलेशिया) में बस आराम करेंगे, बेफिक्र, खाना और सोना, ना लिखना ना पढ़ना। लेकिन क्या बताएँ दिल है कि मानता ही नहीं। सोने की कोशिश करते औंघाते हुए भी लगा कुलबुलाने - कुआला लम्पुर शहर का नाम क्यों और कैसे पड़ा, इसके मायने क्या हैं ? खाने के लिए निकले तो लगे मलय संस्कृति की पहचान तलाशने। जिस इलाके में निकले वहाँ उसकी झलक ही मिल सकी तो उसकी वजह और शहर और मुल्क के इतिहास के सफे पलटने को आतुर हो कर गूगल बाबा के सहारे मुअस्सर जानकारी टटोलते हुए बीएचयू वाले 'रोबिन्दर' (Ravindra Singh) की बहुत याद आयी। कई साल पहले उनसे कहा था - अब और हिस्ट्री-आर्कियोलॉजी नहीं होगी, सब भूल कर केवल कविता कहानी लिखूंगा, उन्होंने ललकारते हुए कहा था - 'आप और अँकल जी (चक्रबर्ती दादा) इन्हें ओढ़ते बिछाते हैं, कैसे भूल जाएंगे हम भी देखते हैं। इस ज़िदगी में तो ऐसा नहीं कर पाएंगे।'
पता चला हमारे यहां जैसे दो नदियों के मेल को संगम या प्रयाग कहा जाता है वैसे ही यहाँ दो नदियों के मेल या मुहाने को 'कुआला' कहा जाता है, और 'लम्पुर' का मतलब होता है - मटमैला। इसी तर्ज पर गोम्बक और क्लांग नदियों के मटमैले संगम पर बसा शहर कहलाया 'कुआला लम्पुर'। सन 1857 के आस पास 'सेलनगोर राज परिवार' के एक सदस्य द्वारा क्लान्ग-घाटी में चीनी खनिकों को भाड़े पर लगा कर टिन की खदानों की खोज कराने के साथ यहाँ आवासीय गतिविधियां शुरू हुईं। उस समय यहां बसावट के नाम पर एक छोटा सा पुरवा हुआ करता था। इसके बाद यह जगह टिन की खदानों से निकाली गयी सामग्री जुटाने और नाव से दूर दूर तक भेजने का केन्द्र बन गया। धीरे धीरे यहाँ खनिकों की बसावट बढ़ती गयी। खदानों पर कब्ज़े को लेकर खनिक-गिरोहों में मारामारी भी होने लगी। कालान्तर में मलय बादशाह ने इनके नेताओं को 'कापितान चिन' (Kapitan Cina: Chinese headman) की पदवी से नवाज़ा। इनमें से लुकुट-खदान के मालिक Hiu Siew को 'कुआला लम्पुर' का पहला कापितान चुना गया। 'कुआला लम्पुर' के लकड़ी से बने शुरुवाती आवासों की छत ताड़ के पत्तों (अतप) से छायी जाती थीं। पुराने चीनी और मलय ठिकाने क्लान्ग नदी के पूर्वी किनारे पर क्रमशः मार्केट स्क्वायर और जावा स्ट्रीट इलाके में बसे। बाद में मलय लोगों के साथ ही बस गए भारतीय मूल के चेट्टियार और मुस्लिम भी।
सन 1880 में ब्रिटिश प्रशासन ने 'सेलेनगोर राज्य' की राजधानी 'क्लान्ग' से 'कुआला लम्पुर' स्थानांतरित कर दी। खद्दानों पर कब्ज़े के लिए हुए आपसी युद्ध में जलाए जाने, बीमारियों और बाढ़ से त्रस्त बारम्बार उजड़ते-बसते इस नगर के अच्छे दिन आए सन 1882 में यहाँ तैनात किए गए ब्रिटिश रेजिडेंट द्वारा तेज़ी से कराए गए विकास कार्यों के साथ और फिर तो यह एक बड़े नियोजित नगर में तब्दील होता गया। प्रशासनिक इमारतों के लिए नदी के पश्चिम वाला हिस्सा चुना गया। सड़कें चौड़ी और साफ कराई गयीं और 1884 में आग से बचने के लिए पकी ईंटों और खपरैल की इमारतें बनाने का फैसला लिया गया, ईंट बनाने के भट्ठे लगाए गए, ताड़ के पत्तों वाली इमारतें गिरा कर उनकी जगह ईंट-खपरैल वाली बनायी गयीं। सन 1886 में क्लान्ग तक रेलवे लाइन बिछवाई गयी। औसतन 81.95 m (268.9 ft) ऊंचाइयों वाली हरी-भरी पहाड़ियों पर आबाद यह शहर1895 में 0.65 km2 बढ़ कर 974 आते आते 243 km2 के विस्तृत क्षेत्र वाले महानगर में बदल गया है। इसकी आबादी 1890 तक 20, 000, 1920 तक 80, 000 और अब बृहत्तर महानगर की कुल आबादी 70 लाख से भी ज्यादा हो चुकी है ।
रबर-उत्पादन के साथ बढ़ी रबर की मांग और प्रवासियों के आगमन ने इसमें बड़ा योगदान किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दरमियान 1942 में जापानी कब्ज़े में आया यह शहर जापान की हार के बाद 1945 में फिर से ब्रिटिश शासन के अधीन आ कर अन्ततः 31 अगस्त 1957 को Federation of Malaya के स्वतन्त्र घोषित होने और 1963 में मलेशिया के गठन के बाद भी कुआला लम्पुर ही राजधानी बनी रही। इसी समय लेक गार्डन्स के किनारे 'पार्लिआमेन' की इमारत बन कर तैयार हो गयी। और अब तो जिधर देखिए उधर बहुमंजिली आवासीय और व्यावसायिक इमारतें, बाज़ार, मॉल, रेस्तोरान, सुपर मार्केट, पेट्रोनास दो-मीनारें, केएल टॉवर, आती जाती मेट्रो, चौड़ी सड़कों पर फर्राटे भरती कारें और दुपहिए, दुनिया के विकसित शहरों में शुमार।
जैसे जैसे यह जानकारियां मिलती जा रही हैं अपनी अहमकाना कोशिश पर उतनी ही कोफ़्त बढ़ती जा रही है। जितना जाना है उससे कहीं ज्यादा जानना अभी बाकी है। अब समझ में आ रहा कि ब्रिटिश ज़माने में आकारित विकसित इस आधुनिक शहर में उनकी छाप तो दिखनी ही है। और फिर इसके आज के पॉश इलाकों में प्राचीन मलय-देश की छवि पाने की उम्मीद कितनी बेमानी हो सकती है। अगर वह सब देखना है तब तो पुरानी बस्तियों-बाज़ारों का चक्कर लगा कर तजबीजना पड़ेगा।
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Source: photos
https://limthianleong.wordpress.com/…/panoramic-kuala-lump…/
This panoramic photo of Kuala Lumpur in 1884 was taken from the book “A Vision of the Past – A history of early photography in Singapore and Malaya, The photographs of G.R.Lambert & Co., 1880-1910” by John Falconer published by Times in 1987 in Singapore.

मलय देश में (1):

Published by Rakesh TewariAugust 16
मलय देश में (1):
सेलामत देतांग (Selamat Detang: Welcome)
प्लाज़ा नामक आवासीय इमारत के उन्नीसवें माले के शयन-कक्ष के सामने ही दिख रहा है कुआला लम्पुर के घने हरियाले भू-भाग के आगे की पहाड़ियों से ऊपर उठती बहुमंजिली इमारतों के बीच गगनचुम्बी 421 मीटर ऊँची मीनार। दुनिया भर में बनी ऊंची मीनारों में ऊपर से सातवें पायदान पर आने वाली इस मीनार को मलय लोग इसे मीनार-कुआला लम्पुर और अंग्रेजी में केएल टॉवर पुकारते हैं। और उसके बगल में खड़े हैं दो बुलन्द 'हीरक पेट्रोनास टावर्' (Twin Jewels of Kuala Lumpur)। नीचे दिखता है वाटर ट्रीटमेंट प्लान्ट, पार्क और गोल्फ कोर्स, और बाएं बगल कुछ दूर पर बहुमंजिली इमारतों के जंगल में प्रवेश करती वलयाकार घूमती मेट्रो लाइन पर थोड़ी थोड़ी देर में आती जाती मेट्रो।
नीचे उतर कर आस-पास का चक्कर लगाने पर लकालक्क चौड़ी सड़कों पर ट्रैफिक के नियमों को मानती दौड़ती कोरिया-जापान की बनी चमाचम्म गाड़ियां लेकिन तनिक सा चूके नहीं कि किसी भी ओर से सनसनाती-भन्नाती हुई बेफिक्री से आती दोपहिया सवारियों से टकराने से बचने की फिक्र करना ज़रूरी वरना तो फिर सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। आस पास के बाज़ारों में मॉल, हर माल मिलेगा एक जगह वाली दुकानें और विएतनाम, लेबनान, हिंदी, चीनी व दूसरे मुल्कों के रेस्टोरेंट । दिन दूना रात चौगुना बढ़ती आदमी की आबादी के मद्दे नज़र सीमित जगह में ज्यादा से ज्यादा लोगों को आवासीय, व्यवसायिक और दूसरी ज़रूरतें पूरी कराने के लिए पश्चिमी दुनिया से चली नए चलन वाली नगरीय बसावट और आर्कीटेक्चर के लिहाज़ से एक खूबसूरत आधुनिक शहर।
लेकिन, क्या बताएँ, तकरीबन अक्खा दुनिया में यूरोप-अमरीका से एशिया के तमाम देशों के बड़े-बड़े शहरों में दीखते विकास के इन मानकों के बीच अपुन का खाँटी देशी मन कुछ और ही तलाशता खो सा जाता है। यहाँ भी वही हुआ, इस सबके बीच तरसने लगा 'मलय देश' की अपनी बानगी देखने को, मगर यह मुराद कम से कम शहर के इस खित्ते में तो पूरी नहीं हो सकी।
बहुत मुश्किल से दिखी भी तो कहीं- कहीं मुल्क की तहज़ीब की लाज रखती मोहतरमाओं के लिबास में दिखी, मगर वह भी आजकल की दिल्ली में भारत की संस्कृति का पल्लू थामे चलने वाली साड़ी, सलवार-कमीज या लहंगे में सजी महिलाओं की तादाद से भी कम। अंग्रेजी हुकूमत के जाने के बाद भी यहां अंग्रेज़ी भाषा में लिखे साइन बोर्ड और यहाँ की भाषा को लिखने के लिए अपनायी गयी रोमन लिपि आज भी यहाँ अंग्रेजी परचम फहरा रहे हैं। उनके पहले से यहां बोली जा रही भाषा का तनिक सा ज़ायका पाने की ख्वाहिश एक दूकान पर लिखे Selamat Detang: Welcome और एक रेस्टोरेंट के नाम Keyra (नारियल) पढ़ कर ही पूरी करनी पड़ी।
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