Sunday, July 31, 2022

मंज़ूर-ए-खुदा न हुआ

समझा फ़साना ख़त्म होने को आया, 
इक नई कहानी का पन्ना खुल गया।  

सोचा किनारा पा लिया है अब तो,
ढह कर किनारा धार में बहने लगा।  

जो जो सोचा बहुत पूरा हुआ,
नहीं हुआ जो मंज़ूर-ए-खुदा न हुआ।   

Friday, July 29, 2022

पाने-खोने की कलख से बढ़ कर, 
पा कर, संजोने की फ़िक्र होती है।  

Monday, July 25, 2022

कितने बहुरंगी --- !!

'कितने बहुरंगी --- !!' 

कभी देखते ही वितृष्णा, 
कभी रीझ जाते हैं  !!
कभी कुछ पढ़ कर ही,
आंसू छलकने लगते हैं,
और कभी पथरा कर,
पसीजते भी नहीं।  
कभी उदार-कंजूस,
नरम-गरम,
एक साथ ही,
कितने अजीब !!
हम, कितने बहुरंगी होते हैं !!

Monday, July 18, 2022

'सटकही स्लीपर'

 'सटकही स्लीपर'


सुबह की सैर पर चलते चलते घिसे तलुए वाली सटकती स्लीपर पर बार-बार सटकते देख सलाह मिली - ' फेंक दीजिए इसे !' फिर इस बाबत दरियाफ्त-मनुहार भी होती रही। सोचते रहे बात तो सही कही मगर बिना चोट खाए छूट जाए वो आदत ही कैसी।

दो दिन से एक 'घौलर-हवा वानर' छत पर उत्पात मचाने लगा। गमलों में लगे पौधे-भिंडी तहस नहस करने लगा। और तो और हिमाकत इतनी कि उनकी छाया में आराम भी फरमाने लगा। देख कर क्रोध में आकर आव देखा न ताव उसे भगाने लपका, भूल से वही वाली स्लीपर पहन कर।

आसन्न संकट से सजग ऊ तो छलांग लगा कर जा रहा इस छज्जे से उस छज्जे पर --- और इधर अपने राम दो ही कदम में फिसल कर ऐसा भहराए कि जगह-जगह धूस उठे, छटक कर दूर गिरी ऐनक का फ्रेम टेढ़ा हो गया, देह अब तक पिरा रही है सो अलग। भला भया जो बुढ़ापे में हाथ-पैर नहीं टूटे, बची-खुची कुदक्कई भी छूट जाती।

तब जा कर दोनों कान पकड़ कर सीख पाया - चिंता करने वालों की बात मान लेनी चाहिए। अब कैसे कहें कि इसी मूढ़-मंद-बुद्धि के चलते स्कूल में बहुतै संटी खाए हैं।

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Monday, July 11, 2022

तीन खिलाड़ी

Rakesh Tewari

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तीन खिलाड़ी: भारतीय धान की हरियाली हसीना





'एक हसीना तीन खिलाड़ी' फिल्म की याद आने लगी भारत में धान की खेती की शुरुआत के बारे में जेनिफर बेटस का टटका प्रकाशित लेख पढ़ते पढ़ते। इस खेल के भी कुछ वैसे हाल नज़र आ रहे हैं।
1. भारतीय खिलाड़ी:
धान की खेती वाले खेल की शुरुवात हुई 1975 में उत्तरी विंध्य के पठार पर बहने वाली बेलन किनारे के चोपनी मांडो, कोल्डिहवा, महगारा के प्युरास्थलों के उत्खनन से। गोवर्धन राय शर्मा की टीम ने दावा किया इस इलाके में धान के दानों के साथ सम्बद्ध किए गए कोयले की रेडियो कार्बन तिथियों के आधार पर लगभग 7000 ईसा पूर्व में इनकी खेती शुरू होने का। कुछ भारतीय पुराविदों को छोड़कर ज्यादातर ने इस दावे को अनेक कारणों से नकार दिया।
2003 > मध्य गंगा के मैदान में झील के किनारे स्थित लहुरादेवा के टीले से मिले जले हुए धान के अवशेष की रेडियो कार्बन तिथि और धान की बनावट के आधार पर डॉ. कृपा शंकर सारस्वत ने वहां लगभग 7000 ईसा पूर्व में धान की खेती का दावा किया। इसके बाद गंगा किनारे झूंसी और हेतापट्टी के टीलों से भी उतने ही प्राचीन खेती से उपजे धान मिलने का दावा डॉ. विद्या धर मिश्र एवं जगन्नाथ पाल आदि ने किया।
2. लन्दन वाले खिलाड़ी
2008 > लन्दन वाले डॉ. डोरियन फुलर आदि ने दावा किया कि धान की खेती चीन की यांग्तजी घाटी में शुरू हुई। साथ ही यह "परिकल्पना" व्यक्त की कि ' गंगा घाटी में खेती से उपजाए बताए जा रहे धान के अवशेष वास्तव में जंगली प्रजाति के हैं। और, कालांतर में, लगभग 2000-1500 ईसा पूर्व में चीन से गंगा घाटी में आए खेती से उपजाए गए धान (जपोनिका धान) के संकरण (हाइब्रिड) से यहाँ के वन्य धान का खेती वाला (पालतू: डोमेस्टिकेटेड) संस्करण उतपन्न हो स्का।
3. कैम्ब्रिज पलट खिलाड़ी
2017 > डॉ. - जेनिफर बेटस एवं अन्य ने दावा किया 'सिंधु घाटी' (पश्चिमी दक्षिण एशिया) में लगभग 3200 ईसा पूर्व में स्वतंत्र रूप से भारतीय धान की खेती प्रारम्भ होने का दावा किया। फुलर साहब ने इसे भी नकार कर कहा कि नहीं इस इलाके में भी खेती से उपजाए चीनी धान के पहुँचने के बाद लगभग 2000-1500 ईसा पूर्व में संकरण के माध्यम से खेती वाले भारतीय धान के संस्करण की प्रजाति को जन्म दिया। बेटस महोदया उनकी इस "परिकल्पना" को "परिकल्पना" मानने से भी पूरी तरह मना करके अपने निष्कर्ष पर मज़बूती से अड़ी हुई हैं। न केवल इतना, उनका यह भी कहना है कि डोरियन साहब की "परिकल्पना" के आधार बहुत उलझाऊ हैं।
बेटस महोदया आगे कहती हैं कि सिंधु घाटी में आया प्रारम्भिक धान गंगा घाटी के अपने प्राकृतिक परिक्षेत्र से वन्य या अर्द्ध वन्य प्रजाति के रूप में आने की सम्भावना है। मतलब गंगा घाटी में 7000 ईसा पूर्व के आस-पास इस्तेमाल किया ज्जा रहा धान अगले चार हजार वर्ष तक (लगभग 3200 ईसा पूर्व तक) वन्य/अर्ध्द वन्य-अर्द्ध खेती से उपजाया हुआ ही लगता है। और, डोरियन साहब के हिसाब-किताब से तो पांच हजार वर्ष तक (यानी 2000 ईसा पूर्व तक) जंगली/वन्य प्रजाति के रूप में ही इस्तेमाल होता रहा, इस इलाके के लोग इस मामले में स्टेटिक या यथावत रहे, इसकी खेती वाली प्रजाति पैदा करने की अपनी स्वतंत्र तकनीक नहीं विकसित कर सके।

गंगा-घाटी के निवासियों ने अपने इलाके के प्राकृतिक वन्य धान का 7000 ईसा पूर्व से उपयोग करना और उपजाना सीखने का दावा सही है !! या,

चीन से 2000 ईसा पूर्व के बाद आए चीनी धान से संकरण से गंगा-घाटी के धान की "परिकल्पना" सही है ?? या,
गंगा-घाटी का वन्य/अर्द्ध वन्य धान 3200 ईसा पूर्व के पूर्व सिंधु-घाटी पहुंचा, वहां उसकी खेती की प्रविधियाँ पनपी जिससे उपजा धान और उक्त प्रविधि कालांतर में वहां से गंगा घाटी में पहुंची।
और तब, 2000 ईस्वी पूर्व में चीनी धान के आगमन से संकरण से विकसित (हाइब्रिड) प्रजाति से क्रमशः आधुनिक धान का विकास हुआ।
भारतीय धान के सन्दर्भ में व्यक्त किए जा रहे उपर्युक्त अभिमतों और परिकल्पनाओं को सम्यक कसौटियों पर कस कर सम्यक निष्कर्षों तक पहुँचने की बड़ी चुनौती है नयी पीढ़ी के शोध कर्त्ताओं (पुराविदों/ पुरवास्पति शास्त्रियों) के लिए। देखें कौन कौन उठता है इन चुनौतियों का 'बीड़ा'। फिर देखिए खेती से उपजे भारतीय धान की हरियाली हसीना के जन्म का श्रेय किसे हासिल होता है - मध्य गंगा-घाटी, सिंधु-घाटी या यांग्त्ज़ी-घाटी को !!!!!!
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