Thursday, October 31, 2013

ख़त्म हो शायद तमाशा

ख़त्म हो शायद तमाशा

१. 
यूं ही, नियत ने, ला दिया, इस मुकाम पे,
इक अजनबी सा रह लिया, इस मकान में। 

२. 
टटोलता ही रह गया, किस तलाश में, 
समझ नहीं यही सका, इस जहान में।  

३. 
कसमसाता जी लिया, अपने ही आप में, 
ज़ज्ब सब करता गया, ढलका न कोर में। 

४. 
दम बहुत घुटता रहा, ओढ़े लिबास में, 
चेहरा छुपाए चल रहा, इक नकाब में।  

५. 
तीर ज्यों कांपा करे, तनती कमान पे,    
तमतमाता रह गया, अपने मिजाज़ में।

६. 
जाम फिरभी पी लिया, रीते गिलास से,
जो था नहीं, दिखता रहा, बहकी निगाह में।

७.
नजरें जमाए था चला, अपने जुनून में,
दबे कदम बढ़ता रहा, सुदूर राह में।  

८. 
झंझा चलीअंधड़ उठे, बेहद अँधेरे में,   
बाती मगर जलती रही, नन्हे से ताख में।  

९.
साथ भी मिलता गया, अज़ीज़ साथ में, 
सबका जुटाया पा गया, यूं ही जहान में।  

१०.
थोड़ा यहाँ साझा किया, हमराह ! राह में,  
बाक़ी का दर्ज कर लिया, अपनी किताब में।   



११. 
छोड़ ये कूचा चला, अगली फिराक में, 
ख़त्म हो शायद तमाशा, उस पड़ाव में।  

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Wednesday, October 23, 2013

डैने खुलें

१. 

मुंशी वही, नाटक वही, किरदार क्या करें,
जो कहानी मिल गई, मंचन वही करें ।

2.
राजा वही, रानी वही, चाकर वही करें,
चारण सुहाते हैं वही, कैसे बसर करें।


3.
मालिक वही, उनकी ही शै, तकरीर क्या करें,
जो एक बार कह दिया, उतना किया करें।

४.
तौल सब उनकी रही, पासंग क्या करें,
बढी-चढी उनकी रही, घाटा यहाँ धरें। 

५.
खूंटों में बंध गए वहीं, कैसे कदम बढें,
उठते वहीं थमते वहीं, ज़ज़्बात क्या करें।

६.
आलिम वही, फाजिल वही, किससे जिरह करें,
भाग-ओ-गुणा, उन्ही का है, हिसाब क्या करें।

७.  
कातिल वही, मुंसिफ वही, किससे अरज करें,
बेहतर यही है, हम कहीं, गुमनाम हो रहें।

८. 
पिंजरा वही, फंदे वही, दाना वही करें,
बंधन हटें, डैने खुलें, पर फड़-फड़ा रहे।  
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