Sunday, June 23, 2013

आखिर ये बादल क्यों फटा


 आखिर ये बादल क्यों फटा

१. 

सोच कर देखो ज़रा, आखिर ये बादल क्यों फटा, 
पहाड़, उस प्रवाह में, तिनके की माफिक क्यों बहा । 

२. 

सोचा था, ये सारा जहां, अपने हुनर से पा लिया,
फिर भला, तीरथ में वो, मंदिर में तेरे क्यों हुआ। 

३. 

भरता रहा, अपने करम से, आज वो फूटा घडा,
निगाह पर फिर भी भला, परदा तुम्हारे क्यों पड़ा। 

४. 

कुदरत को तब छेडा किया, मर्जी जो आई सो किया,  
आँगन में आई, रेत से, क्यों इस तरह डरा हुआ। 

५. 

उन घटाओं को सदा, छलिया सा, क्यों छला किया, 
देख लो, ये, किस तरह, पांसा यहाँ, उलटा पड़ा।   

६. 

चढ़ती सनक में, आप ही सदियों का सच, लांघा किया,
यक बक, भटकती मौत ने, अपना निवाला पा लिया।  

७. 

अपना ज़मीर, तोड़ कर, मिलता नही कुछ भी यहाँ, 
उस पार सब सूखा हुआ, इस ओर है, गहरा कुँवा। 

८. 

दोनों कगारों को ढहा कर, क्यों किनारों पर चढा,
सागर से आगे ये पहाड़ों तक सुनामी क्यों उठा। 

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Thursday, June 20, 2013

हाथ में, दिन चार

हाथ में, दिन चार 


१. 
आपने, कैसी यहाँ, सज़ा सुनाई है,
बोलने, पर भी, अरे, सांकल चढ़ाई है। 

२. 
ज़िन्दगी ऎसी मिली, उनकी दुहाई है, 
बे वजह रूसे हुए, कैसी रुखाई है। 

३. 
आग में जलते रहे, अपनी लगाई है, 
आपने बस्ती बखुद, अपनी जलाई है। 

४. 
वक्त को मारा किए, किसकी ढिठाई है,
आपने, किस्मत यही, अपनी लिखाई है।  

५. 
हाथ में, दिन चार हैं, कैसी लड़ाई है,
आपने, क्यों तोहमतें, झूठी लगाई हैं। 

६. 
रुक नहीं सकते यहाँ, वक्ती सराय है, 
तमाम राह थक चुके, ये शाम आई है। 

७. 
फिर उड़े भीगी हवा, सागर से आई है, 
बोल-हंस लें आज, कल, अपनी विदाई है।   

८. 
ऐसे न, रंज से भरो, इसकी दवाई है, 
दिल में तुम्हारे, प्यार से चोरी कराई है।    

९. 
इसमें नही कोई खता, हंस-हंस के आई है, 
मांग लो तेरी कसम, तुझसे ही पाई है। 

१०
बस रोज़ ही बढ़ती रही, अपनी कमाई है, 
उनकी दुआ, जो आप ही, भर-भर लुटाई है। 

११ 
हमने जतन से, एक ये, शम्मा जलाई है, 
काली वो रोशनाई, देखिए लजाई है।  

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Tuesday, June 11, 2013

अपनी ही बात ऎसी


Avdhesh Sharma Wo din yaad karo--wo hansna hansana..wo chip chip ke milna.....Lkw Univ Zim ki 20 ft Rassa chadna ..jo sab nahi chad paate the .....

अवधेश शर्मा जी के उपर्युक्त उद्गारों के नाम 


अपनी ही बात ऎसी


हम क्या बताएं वो थी, अपनी ही बात ऎसी।  
कनखी से देख लेते, इतनी ही, हद थी अपनी।  

उस पार के सहन में , हौले से दौड़ती थी । 
उस राह से गुजरते, खिडकी ज़रूर खुलती। 

धीरे से मुस्कराती, धीरे से राह चलती। 
कालेज का मोड़ आता, थी उसकी चाल थमती। 

कहती नहीं, मगर वो, भावों से बात करती।
मिलती नहीं, अलग से, थी 'क्लास' में घुमडती। 

कितना तो थी झिझकती, बस 'नोटस' मांग लेती। 
मिलता नहीं था फिर भी, बस राह जोह लेती।

बेहोश जब पडा था, सिरहाने आ खडी थी। 
था होश में जो आया, लोगों से ये सुनी थी। 

थी देर मुझको होती, 'बस' उनकी छूट जाती। 
'स्टाप' पर उतरती, मुड़-मुड़ के देख लेती। 

गुजरा है दौर कितना, लगती है बात कल की,
कैसी  सजी है दिल में, तसवीर तब की तैसी। 


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Sunday, June 2, 2013

शीतौ लागै तत्ता

शीतौ लागै तत्ता


कैसी धूम मचाए दुआरे, लेते दौड़ बलैया,
नंबर दो में पास हो गए, लहरा मारें बबुआ। 

पइसा फेंक, तमाशा देखैं, डारे कंध दुशाला, 
धरम छोड़ सब पत्तल चाटें, गाँव घरे के कुत्ता। 

लाज नहीं, कछु नीति नहीं, आँखिन काला कजरा,
घर फूंकै, अरु देश जराई, ता पर खींस निपोरा। 

ज्ञान न देखैं, ना सधुआइ, हरियर द्याखैं पत्ता,
फर्शी मारैं कइस सलामी, देखत लकदक लत्ता। 

सुमिर राम अवगुन धरें, चित्त चले अलबत्ता,
गंग अबै दूषित बहै, दिल्ली-काशी-कलकत्ता। 

काम न आपन जोई करैं, औरन परसें धत्ता,
सांसत परे बिसुरत घूमें, पग-पग खावैं धक्का।  

जैसा बोए तैसै काटें, का हो बाबू कक्का ? 
काँटा गझिन राह में रूंधे, सोहै कहाँ गलैचा ? 

देश बचाओ, धरम बचाओ, चोर भगाओ रट्टा,
लगा मुखौटा चोरै बोलै, शीतौ लागै तत्ता।

धूर उडाए भसम रमाए, तारी मार पटक्का,
महाकाल तांडव पर उतरे, गूंज उठाए ठट्ठा। 
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