Saturday, June 11, 2011

काको सौंपें रास ??

काको सौंपें रास ??

राकेश तिवारी



रीति प्रीति सगरी नई, बदला सब व्यवहार.
युग बीता बदला समय, नया बना संसार.


बचपन में सुनते रहे, बड़ बूढ़न की बात.
पइसा याकु हराम का, घरु ना लायहु लाल.


जौ करिहौ कछु काम लघु, घरु ते दयाब निकार.
पनही मारब सौ, गिनब, याकै याकु हिसाब.


पूछत हैं सब आजु मिल, कैसि नौकरी त्वार.
झूरै वेतन पर कटै, या कछु उपरौ क्यार.


भला बुरा मिल तब, किये देवासुर संग्राम.
बेबस बन अब सुर रहैं, असुरन ही का काम.


पाप पुण्य के डोल पर, डोलत ते सब लोग.
आपहि पाप बटोरने, लगी भई अब होड़.


लछमी माता सरसुती, तब पूजा थी जोर.
करिया पूंजी पुज रही, मचा मचा कर रोर.


पढ़े लिखे बाबू बनें, बन मनबढ़ सिरमौर.
भलमानुस चाकर बनैं, रोब चढ़ावैं चोर.


सुख दुख के नाते रहे, भाई बन्द जवार.
स्वारथ ही अब बच रहा, बाकी सब बेकार.

१०
एक तमाशा चल रहा, आज सरे बाज़ार.
पइसै मोल बिका करैं, बड़े बड़े फनकार.

११
बहुधा ग्यानी आजु कै, जावत हैं बौराय.
राज-पाट जैसै मिलै, रावन सम बनि जांय.

१२
मति उनकी मारी गई, 'शुचिता' ही हर लांय.
उनको तारन के लिए, राम कहाँ ते आंय.

१३
सज्जन सुर की का कहैं, मधुर सुरीले बोल.
कानन को सुख का मिलै, नक्कारन का शोर.

१४
संविधान को ताप कर, दियौ राख सम डार.
आंचु जगावौ आजु फिर, यहै बनी दरकार.

१५
भ्रम भारी इस लोक में, चौंचक सब चकचौंध.
मारे मारे फिर रहे, मति हारे सब लोग.

१६
कहाँ आज गांडीव है, कहाँ लछ्य पर बान.
वीर कहाँ सब चुप परे, गहें महा संग्राम.

१७
लोकपाल दिक्पाल सब, दिशाहीन हैं आज.
कृष्ण कहाँ ढूंढें मिलैं, काको सौंपें रास ??

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१०, ११. ०६. २०११