Friday, July 31, 2020

मोरी कागज़ की नाव !

मोरी कागज़ की नाव ! 

मोरी कागज़ की नाव, चली सागर के पार !
कबौ हीलै ज्यों पात ! कबौ थिर चली जाय !
मोरी कागज़ की नाव !! मोरी कागज़ की नाव !!  

कबौ हवा में बहाय, कबौ लहर में लहाय !
मोरी भाव भरी नाव, कबौ ठुमक ठुमक जाय! 
मोरी कागज़ की नाव !! मोरी कागज़ की नाव !!  

कबौ झूरै झूर जाय, कबौ बहिया बहाय, 
कबौ भंवर में घुमाय,कबौ गलि-गलि जाय !  
मोरी कागज़ की नाव !! मोरी कागज़ की नाव !!       

कबौ बेड़न में साजै, कबौ एकला चलाय !
डाँड़ माँझी मँझाय, कबौ संगी संग खेवाय !
मोरी कागज़ की नाव !! मोरी कागज़ की नाव !!    

कबौ नदिया की धार, चाँद तारों की छाँव !
झिल मिल झिल मिल, चले सपनों के गाम ! 
मोरी कागज़ की नाव !! मोरी कागज़ की नाव !!      

कबौ डुब्ब डुब्ब जाय, कबौ परम सुख पाय ! 
कबौ मन मन भाय, कुछौ कहा नहीं जाय !     
मोरी कागज़ की नाव !! मोरी कागज़ की नाव !!  
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Sunday, July 19, 2020

'झिरिर झिरिर झिरियाय ===='

 'झिरिर झिरिर झिरियाय  --- '  


आय अंजुरी में कोरी, बरस गयो रे !
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!!  
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!!   

भोली सूरत पे ऐसो रिझाय गयो रे !!  
भीगी अलकन में ऐसो, भिजाय गयो रे !!
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!! 

मुंदी पलकन में ऐसो  समाय गयो रे !!
आय बुँदियन से ऐसो सजाय गयो  रे !! 
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!!  

मोती मोतियन की ऐसो गुंथाय गयो रे !            
आय सुध बुध सगरो भुलाय गयो  रे !! 
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!!

गात कोमल ओ आनन जुड़ाय गयो रे !
आय अंतर-मन माधुरी घोराय गयो रे !
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!!  

आ अटरिया पे जियरा लुभाय गयो रे !   
आय कानन में रिमझिम गवाय गयो रे !  
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!!

आय बरखा में फुहरा हनाय गयो रे !
आय दुअरा पे रहिया छेंकाय गयो रे !
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!! 

आय हरित बसन में सुहाय गयो रे !
आय झिरिर झिरिर झिरियाय गयो रे!!
आय सावन में झुलना, झुलाय गयो रे !!!   
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 इस रचना पर पसन्दगी जताने, दिल लुटाने और इसकी सराहना करने वालों को हार्दिक धन्यवाद; इसे जन्मने वाली धरित्री, ऋतू, मोहक सौंदर्य और भावों को सादर, सस्नेह प्रणाम !! 😀🙏🙏♥️♥️🙏🙏

Friday, July 10, 2020

'लहरों पे बहके से बेड़े लगे।'

@ (c) Rakesh Tewari
Published by Rakesh Tewari47 mins

'लहरों पे बहके से बेड़े लगे।'

पौध चुन-चुन के रोंपे, यूँ बढ़ने लगे,
फूल, लतरों पे, बगिया में, खिलने लगे।

बात की, बात में, कितने दिलकश लगे,
अपने-अपने से इतने यूँ लगने लगे।

महकें मह-मह महकते फ़िज़ां में बसे,
सांस भर-भर हवाओं में उड़ते रहे।

देख कर, देखा-देखीं में रीझा किए,
देर तक, बेसुधी में यूँ डूबा किए।

लगते-लगते किनारे पे यूँ आ लगे,
जैसे लहरों पे बहके से बेड़े लगे।
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