Friday, December 11, 2020

'बड़-भाग से आता है।

 'बड़-भाग से आता है। '

 
यही कारवां की किस्मत में, नहीं ठहरता है, 
डेरा लगता जल्द उखड़ता बंधता रहता है।

जान-बूझ कर फिर वैसी नादानी करता है, 
जुगुर-जुगुर जलती बुझती आती जाती है । 

सपने रचता, सपनों में ही खोया रहता है, 
सपने बस सपने होते हैं, टूटा करता है।  

जिस पड़ाव में रमता, उससे बिछड़ा करता है, 
चटक रंगों में रचा चित्र धुंधलाया करता है। 

मीठी कड़वी पीर समेटे आकुल चलता है, 
सुधियों की पूँजी में जीता मरता रहता है। 

उसी डाल पर कोमल कोपल उमग सुहाता है, 
कितना हू पियार हो पियरा पात झुराता है।  

सहज भाव जो मिले सो लीजे, क्यों घबराता है,
नेह किसी के हिस्से में बड़-भाग से आता है।  

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Thursday, December 3, 2020

मुक्त हुए

'मुक्त हुए'


भावों के,
पिंजर में आकुल , 
छटपट करते,
क्या करते !! 

फिर, गीत रचे, 
न न कहते,
सब व्यक्त किए
फिर मुक्त हुए !!