Tuesday, March 20, 2018

भरोसा

भरोसा

Published by Rakesh Tewari

कुछ नाते बनते हैं, कितने कोमल संवेदी,
पल में खिलते कुम्हलाते, सपन्दित ऐसे सोई ।
लगते ही कैसी भी, थोड़ी सी भी चुप्पी,
आशंका होने लगती है, जाने वो कैसी कैसी।
जी अकुलाने लगता है, ऐसी भी क्या मज़बूरी,
उत्कंठा होने लगती है, कुशल-क्षेम पा लेने की।
सम्बल मिलता रहता है, होती ऐसी पूछाताछी,
फिर एक भरोसा मिलता है, पोढ़ी दुनिया मीतों वाली।

Monday, March 19, 2018

'राग दरबारी' के बहाने'

Rakesh Tewari added 6 new photos.
Published by Rakesh TewariMarch 17 at 6:17pm
'राग दरबारी' के बहाने'
असलहा बाबू का ठिकाना तलाशता कचहरी में भटक रहा था जब जेब में फंसा फोन कुनकुनाया।
उधर से निरुपम जी के बोल सुन पड़े - '18 मार्च को लखनऊ में रहेंगे ? 'रागदरबारी' के प्रकाशन के पचास बरस पूरे होने पर 'राजकमल प्रकाशन' उस दिन 'बतकही' का आयोजन कर रहा है। दरबार और लेखक दोनों से आपके वास्ते के मद्देनज़र आपकी भागीदारी प्रासंगिक रहेगी।'
तुरत ही सहमति जताते 'रागदरबारी' के लेखक 'श्रीलाल जी' का मुस्कुराता हुआ चेहरा याद आ गया। दशकों पहले एक शादी में उनका अभिवादन करते ही मेरे हाथ में थमी राईफल देख मेरी और लपके - "ये हुई ना मर्दों वाली बात।" फिर राईफल का निरिक्षण परिक्षण करके बोले - "तीन सौ पन्द्रह ब्वार की जगह तीन-सौ-पचहत्तर मैगनम होत तो औरौ रोआब रहत।'
श्रीलाल जी के अस्सी बरस पूरा होने के उपलक्ष्य में आयोजित 'अमृत महोत्सव' के अंतर्गत 'नामवर सिंह जी' के सम्पादन में प्रकाशित 'श्रीलाल शुक्ल: जीवन ही जीवन' में स्वयं शुक्ल जी के सुझाए लेखकों में शामिल होने का दुर्लभ आशीर्वाद मुझे भी मिला। उनसे जुड़े और भी अनेक प्रसंग याद आते गए इसलिए 'बतकही' में भागीदारी का बुलउआ पा कर मन उमगने लगा। सोचने लगा उनके चलते अपनी भी कुछ पूँछ हो गयी।
'बतकही' के लिए तैयारी करते समय घबराया भी, वहां तो बड़े-बड़े जमे हुए साहित्यकार मनीषियों का जुटान होगा उनके अंगना में ई भकुआ का करेगा। लेकिन यह सब तो हँकारी सुनकर हुंकारी भरते समय सोचना था अब तो भागीदारी करने से बच नहीं सकते।
फिर सोचा, कल की कल देखा जाएगा - कैसा और क्या-क्या भाख-बूक पाएंगे। फिलहाल इसी बहाने 'शुक्ल जी' का सादर स्मरण करते हुए 'श्रीलाल शुक्ल: जीवन ही जीवन' में प्रकाशित अपना लेख - 'इंडोलॉजी और श्रीलाल जी'- चेंप रहा हूँ, पढ़ कर परखिए कहाँ ठहरता है।
------
Image may contain: 1 person, textImage may contain: 3 peopleNo automatic alt text available.No automatic alt text available.Image may contain: 2 peopleNo automatic alt text available.

उन्हें ही कोसेंगे इसके लिए भी ?????

Rakesh Tewari added 2 new photos.
Published by Rakesh TewariMarch 15 at 8:36pm

उन्हें ही कोसेंगे इसके लिए भी ?????

अरसे से सुनते रहे सरकारी महकमों में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के बारे में, सड़क नाली नगर नियोजन सब बेमशरफ़ होने के बारे में, बरसात में जलभराव, गर्मी में छाया नहीं, वातावरण पॉल्यूटेड, वगैरह वगैरह।
सेवानिवृत्त हो कर टिक कर रहने पर करने को कुछ ख़ास रहा नहीं तो सुबह शाम जब तक मोहल्ले में सैर पर निकलने लगे और देखा मोहल्ले के समुचित नियोजन के तहत हर सेक्टर में पार्कों की व्यवस्था, सड़क किनारे तरतीब से लगाए गए पेड़, आस-पास के सुधी निवासियों के प्रयास से कुछ पार्कों में खासी हरियाली और टहलने के लिए ट्रैक का सराहनीय रख रखाव। सुबह शाम पेड़ों पर चिड़ियों की चहचहाहट चित्त काया चैतन्य कर देतीं। हवा के झोंकों से बसी सप्तपर्णी पर लदे फूलों की गमक के बीच टहलता गुनगुनाता -
संझा शरद सुहावन आये, गाढ़े मधुर मधुर मधुराय,
फूलै धवल राग गहराये, मादक सत-पर्णी मुस्काय।
सोचता कुछ बरसों में बढ़ती हरियाली बरहों मास शुद्ध हवा गर्मियों में छाया देने लगेगी और लुप्त होती चिड़ियों की तादाद भी और बढ़ जाएगी। तब समझ में आया सब कुछ बुरा ही नहीं हुआ है, नियोजन और वृक्षारोपण करने वाले भी सरकारी विभागों में काम करने वाले हमारे भाई बंद ही हैं, इन सकारात्मक कामों का श्रेय तो उन्हें मिलना ही चाहिए। लेकिन ये भाव धीरे धीरे दरकने लगे।
सरकारी विभागों के लोगों को जो करना है, अच्छा या खराब, करेंगे ही। हमें अपनी करनी के इन नमूनों पर ज्यादा गौर कर लेना चाहिए। एक पार्क के एक बगल की तकरीबन पूरी लम्बाई की बीस फ़ीट चौड़ी सरकारी जमीन उनसे लगे प्रतिष्ठित नामी गिरामी निवासियों द्वारा बाकायदा घेराबंदी करके कब्जियायी दिखी। कुछ पार्कों में मकानों के लिए लायी गयी गिट्टी-मोरंग-बालू या मलबों के ढेर और घरों से निकला कूड़ा सामने की नालियों में अंटा हुआ ------
और, सबसे ज्यादा बेरहमी दिखी हरे पेड़ों को ले कर। इस सिलसिले में एक ही उदाहरण काफी होगा - एक हरे भरे पेड़ को ले कर अलग अलग लोगों के अपने ही नज़रिए सुनने को मिले - गर्मियों में धूप के ताप से बचने के लिए लोग बैठक लगाते और उसकी छाया पड़ोस के ब च्चे खेलते रहते, इस सबसे बगल के घर के रखवाले के आराम में खलल पड़ता। एक साहब पेड़ की छाया में अपना वाहन खड़ा करते तो उसकी डालियाँ उससे टकराने लगतीं, एक दिन उन्होंने यह बात कही। उधर पास में ही झोंपड़-पट्टी में रह रहे कुछ लोगों को जलावन की जरूरत थी । यूं तो इस पेड़ की कुछ शाखाएं बरसात के पहले छांट कर दोनों समस्याओं का निदान आसानी से हो जाता, बरसात आते ही फिर से हरिया जाता लेकिन बगल वाले के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था, कांट छांट पर लगने वाला पैसा बचाने और समस्या के समूल नाश के लिए उसने झोंपड़ पट्टी वालों के साथ नायाब प्लान बनाया।
एक सुबह जब तक लोग ठीक से जागते हरा-भरा पेड़ ठूंठ में तब्दील करा दिया गया, मोटी मोटी शाखाएं जलावन बन गयीं बिना किसी लागत के !! लोगों की पूंछाताछी पर दोष मढ़ दिया - 'वाहन स्वामी पर कि उनके कहने पर कटवाया है', और वाहन मालिक बोले - ऐसा काटने को तो नहीं कहा था।बेचारी निरीह चिड़ियाँ चीं चीं करती देर तक सुबकती रहीं ठूँठे पेड़ के इर्द गिर्द, नंगे तारों पर बदहवास। सूने उदास पेड़ का विषाद-विलाप किसी ने नहीं सुना, काठ हो चुकी संवेदनाओं के चलते। आते जाते ठूंठ पर पड़ती हर नज़र भीतर तक एक तीखी टीस कचोट जाती है। लेकिन इससे किसी को क्या लेना देना ?
ऐसी की तैसी वृक्षारोपड़, हरियाली, गौरैया बचाने, बायो-डायवर्सिटी संजोने, आक्सीजन बढ़ाने, पॉल्यूशन मिटाने जैसे अभियानों, और हरे छायादार पेड़ कटवाने के लिए बने नियमों-कानूनों की !!!
पानी पी-पी कर जिन सरकारी विभागों को हम हर दिन हर मौके पर कोसते रहते हैं, क्या उन्हें ही कोसेंगे इस दुर्दशा के लिए भी ?????
-------

किसके रंगों की आभा है

Falguni Krishanana 

किसके रंगों की आभा है
सतरंगी जो बिखरी है...!!!


Manage


LikeShow more 
Rakesh Tewari 

भटक अटक कर, चला बटोही, 
किनके रंग की पूंजी जोरी !


देश गाम में, फिरती चकरी, 
किनसे पायी रंग बटोरी !

कितने रंग जुटे किस बखरी,
कवन रंग फागुन चटकारी !

क्या बतलाएं किनके रंग की,
कितनी कैसी आभा बिखरी ! 

संचित रंगों वारी झोरी, 
छितराई किनकी इस होरी !! 

Saturday, March 3, 2018

होरी रंग, रंग डारी !!!

Published by Rakesh TewariMarch 1 at 10:20pm
होरी रंग, रंग डारी !!! 

ऊँची ऊँची रे अटारी,
चढ़ि मारी पिचकारी।
बाहर भीतर ना विचारी,
ऐसो रंग, काहे डारी !!! 


उज्जर बसन मोरा
लाल रंग डारी।
टेसू टहकारी, डारी,
ऐसो रंग, काहे डारी !!! 


गुलाबी रंग डारी, 
डारी, इतर फुलेल, डारी। 
नीला रंग डारी,
ऐसो रंग, काहे डारी !!!


रंग में सजाई, गोरी,
सांवरी सलोनी, डारी।
धानी, बरजोरी, डारी,
ऐसो रंग, काहे डारी !!! 


नाहीं भूले तोरी गारी, 
रस में पगाय डारी।  
जियरा जुड़ाय डारी, 
ऐसो रंग, काहे डारी !!!   

हेल-मेल डारी, डारी,
घोरि कै बनाय डारी।
दिनो दिन गढ़ाई,
ऐसो रंग, काहे डारी !!! 


राग मोह रंग डारी, 
सातो रंग हलोर डारी,
नेह रंग भेय डारी, 
ऐसो रंग काहे डारी !!

घेरि घेरि, होरी डारी,
होरी रंग, रंग डारी।
छूटै ना छोड़ाय डारी,
ऐसो रंग, काहे डारी !!!

ऐसो रंग, काहे डारी !!! 

-------

होली की शुभ कामनाओं सहित
http://www.holifestival.com/ae/en/festival-of-colours