Tuesday, November 9, 2021

ख्यालों में असलियत दिख नहीं पाती अक्सर,
कि हरेक ख़्वाब हकीकत नहीं बनता हरदम।  

कितना ही उड़ रहे हों परिंदे आसमानों तक, 
शाम ढले लौटना पड़ता ही है बसेरों तक।  

भली है संग संग चलने की ख्वाहिश, लेकिन 
लाओगे कहाँ से एक सी रफ्तार दम भर।  

Sunday, November 7, 2021

कितना हू मन अटका भटका,
बांध चला चल अगली ठौर !!!

07 Nov 2017

Friday, November 5, 2021

कोशिश तो बहुत की 
संजोने की, 
शब्दों में समाते ही नहीं।  

Tuesday, October 26, 2021

पारी पारा चले जा रहे, 
सबको ही तो जाना है ! 
जितना जिससे हो पाए, 
बकिया सब निपटाना है ! 
इक दिन आएगा परवाना  
फिर काहे सकुचाना है !!
प्रेम पियाला पियो कंठ भर, 
भर भर नेह लुटाना है !!

Thursday, September 30, 2021


अगले दर्जे में दाखिले का वक्त आ रहा है, 
सोच रहा हूँ किस विषय का फॉर्म भरा जाए, 
वो कहते हैं आइए हमारी पाँति में शामिल हो जाइए,  
मगर सुना है उसके लिए 'एंट्रेंस एग्जाम' पास करना पड़ेगा , 
पास भी हो पाऊंगा इस नए इम्तिहान में, डर लगता है
सोचता हूँ  ये वाला 'हर्डल' कूद पाना मुश्किल हो गया है !! 

Tuesday, September 14, 2021

किसी किसी को मिलती है किस्मत ऐसी !
पलट पलट कर जिसे देखता हो कोई !!




Sunday, August 8, 2021

बहुत निश्छल
लगता है, 
ये नेह।  
बहुत प्यारा,  
बिना किसी
दुराव-छुपाव् वाला। 
लगाव ममत्व भरा, 
भोला, एकदम सच्चा, 
बड़े भाग से 
मिलता है।  
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Saturday, July 24, 2021

चलो यहाँ से भी, कहीं दूर चलें अब, 
चुरा के वक्त ले जाने लगे हैं लोग ।   

रोज ही जश्न, मनाने लगे हैं लोग।  
पार्टियों में वक्त बिताने लगे हैं लोग।  

चलो अरण्यों में बस जाएं कहीं अब।  
चलो यहाँ से भी, कहीं दूर चलें अब !!

Monday, May 17, 2021

 सबसे बढ़िया है
ख्यालों में उड़ते रहना। 
बिन पैसे, मेहनत बिना,
दुनिया की सैर कर आना। 

Friday, April 16, 2021

 कैम्ब्रिज: 

ये कहानी एक अत्यंत संकोची स्वजन की है। गहन अपनापे और भरोसे के बिना ऐसे लोग अपनी निजता साझा नहीं करते। सोचता रहा कभी इत्मीनान से लिखूंगा उनकी कहानी, खूब सोच समझ कर। लेकिन इस दौर में, कब्रिस्तान और वैकुण्ठ धाम पर लग रही कतारों की खबर देखते-पढ़ते सोचने लगा सोचते-सोचते कहीं सोचना ही न रह जाए, और अरबराने लगा हूँ अभी ही कैसे भी लिख डालने को। 

उनसे मेरी मुलाक़ात हुई थी 'कैंब्रिज युनिवर्सिटी' की उस शानदार लाइब्रेरी में।  न दिनों 'एन्सिएंट इंडिया एंड ईरान ट्रस्ट' की फेलोशिप पा कर कैंब्रिज के 'ब्रूकलैंड एवेन्यू' वाले विक्टोरिया हाउस में बोरिया बिस्तर धरने के बाद  सबसे पहले कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में ही खूंटा गाड़ कर जमे हुए सरनाम दादा दिलीप चक्रवर्ती से मिलने गया। वहां की साफ़-सफाई चमक-दमक और गोरों के सलीके देखता सूट-बूट-टाई में सज कर छतरी दबाए भकुआया हुआ उनसे वहां के तौर तरीके समझने लगा। आगाह करते हुए उन्होंने बताया अपना हिन्दुस्तानी तरीका यहां नहीं चलता, जहाँ चाहो जब चाहो किसी के पास जा कर गोप (गप्प) मारने वाला हिसाब यहाँ चोलबे ना।  शाम तक लाइब्रेरी और शाम को या छुट्टी में ही मुझसे भी मिलना हो सकेगा। उनकी ताकीद को सख्ती से मान कर निहायत नए माहौल में चुपचाप लाइब्रेरी में दिन बिताने लगा।

मेरी फेलोशिप तो बस तीन महीने की थी मगर वो एक साल से एक रिसर्च-असाइनमेंट पर आए हुए थे। हिन्दुस्तानी होने के नाते उनसे बात करने को लहकता मगर दादा की ताकीद के मुताबिक़ मन मार कर रह जाता।  

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 किसी अति संकोची के लिए आसान नहीं होता अपना मन साझा कर लेना, गहन अपनापे, और निजी भरोसे के बिना।  

Wednesday, April 14, 2021

(2)



'दिन भर लाइब्रेरी में खपता, फेलोशिप के लिए मटेरियल तलाशते पढ़ते, नोट्स बनाते और चुनिंदा पेजों के फोटोस्टेट कराते। शाम ढलते, पैदल लौटते वही ख़याल ज़ेहन में तैरने लगते। कुछ देर कैम नदी में नाव की सैर/ पंटिंग करते टूरिस्टों टूरिस्टों की धूम पर उड़ती नज़र डालते, कभी कभी यूनिवर्सिटी कैंटीन में काफी के एक प्याले पर लंबा समय अनमना सा उदास उदास कट जाता। रेंटेड रूम में पहुँच कर अकेलापन काटने सा लगता।

उस ज़माने में नया नया सीखा कम्प्यूटर और नोकिया का छोटा मोबाइल फोन बड़ा काम आया। लाइब्रेरी के डेस्क-टॉप पर इंटरनेट सर्विस ने कम्युनिकेशन का रास्ता खोल दिया।    


क्रमशः 

Friday, April 2, 2021

जुटेगी भीड़ बहुतेरी तेरी देहरी पे आ कर के, 
इन्हें अपना समझने की कभी भी भूल मत करना !!    

   घन मिले मेह बन मुक्त हुए। 

Thursday, April 1, 2021

आईने की आँख ही कुछ कम न थी मेरे लिये 
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना 


परवीन शाकिर 
'जश्न-ए-खुशबू' 
प्रकाशक : रेमाधव आर्ट,
काँप उठती हूँ में ये सोच के तन्हाई में 
मेरे चेहरे पे तिरा नाम पढ़ न ले कोई 

परवीन शाकिर 
'जश्न-ए-खुशबू' 
प्रकाशक : रेमाधव आर्ट,

Friday, March 19, 2021

'लेखक' होना

'लेखक' होना

लिख लेता हूँ,
मन करता है तो
लिख लेता हूँ,
रिकॉर्ड करने को,
गहन भावों में
डूबते हुए,
संजो लेने,
दुःख और प्रेम
उड़ेल कर,
साझा करने
सहज होने को
लिख लेता हूँ।
लिख लेता हूँ,
शौकिया,
कविताएँ, लेख, संस्मरण,
कुछ कुछ,
छप भी जाता है।
मगर, मात्र
लिखने भर से,
प्रकाशित होने से,
कोई 'लेखक' नहीं
बन जाता ।
'लेखक' बनना !!
बड़ा कठिन है।
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Saturday, March 13, 2021

भरोसा खुद पे अब टिकता नहीं,
चलो यहाँ से दूर खो जाएं कहीं। 

जो मिल गया वो भी कुछ कम नहीं,   
सिरज कर साँसों में सो जाएं कहीं !!

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Wednesday, February 10, 2021

'HI'



किसी ने पढ़ लिया !
अन्तर्पट पर लिखा ! 
पढ़ कर,  
लिख दिया, 
फलक पर,  
'HI' 
कैसे हैं आप !'


Friday, January 29, 2021

 चुप रहने का एक मकसद साधना में लगे रहने में साथ देना भी होता है।  

Tuesday, January 26, 2021

अवस्था

 परम संतोष के बाद संन्यास की अवस्था आती है !!!

Sunday, January 24, 2021

बलराम शुक्ल : कर्णजीवातुभूतम् (कीमिया-ए-इश्क़)

 कर्णजीवातुभूतम् (कीमिया-ए-इश्क़)

बलराम शुक्ल 

-1-
विरञ्चिना विरचिता सुन्दरि! त्वं न सुन्दरी।
तथा, यथा मनस्तूल्या मया त्वं सुन्दरीकृता॥
हे सुन्दरी,
ब्रह्मा ने भी तुम्हें उतना सुन्दर नहीं बनाया है
जितना कि मैंने अपने मन की कूँची से सँवारकर
तुम्हें दर्शनीय बना दिया है
-2-
त्वं मनोमुकुरे यावन्मयाकल्प्य विलोकिता।
न काचदर्पणे तावत् त्वयात्मापि निरीक्षितः॥
खूब सजा सँवार कर
हृदय के दर्पण में
जितना ध्यान से मैंने तुम्हें निहारा है
उतना तो काच की आरसी में
तुमने भी अपने आप को नहीं देखा होगा
😚
मया मनोरथैर्यावत् त्वत्प्रतोल्यः प्रतोलिताः।
त्वद्वीथीनामभिज्ञानं न तवापि तथा भवेत्॥
मन के रथ पर सवार होकर
(या, मनोरथों के वश)
तुम्हारी गलियों को
जितना मैंने नापा है
अपनी गलियों की उतनी पहचान तो तुम्हें भी नहीं होगी
-4-
यावदाकारितं नाम मया तव यथा मिथः।
न तावन्न तथा सर्वैः सम्भूय स्वजनैस्तव॥
अकेले में
तुम्हारा नाम जितना मैंने पुकारा है
उतना तुम्हारे सारे सगे–सम्बन्धियों ने
मिलकर भी नहीं लिया होगा
-5-
यत्सकृन्मितभाषिण्या भाषितं जातु न त्वया।
कर्णजीवातुभूतं ते तदप्याकर्णितं वचः॥
अल्पभाषिणी तुमने जो बातें एक बार भी नहीं कही
उन कर्णरसायन जैसी बातों को भी
मैंने सुन लिया है!
-6-
द्वित्रकृत्रिमगद्यानि गदितानि सह त्वया।
पद्यत्वेन समापाद्य महाकाव्यं मया कृतम्॥
तुम्हारे साथ
जो २–३ कृत्रिम गद्य में बातें हो सकी
उन्हीं को भावपूर्ण पद्य में बदल कर
मैंने महाकाव्य लिख दिये हैं!

Thursday, January 21, 2021

हैरान हैं

वैसे तो अपना देश है, महान है, 
इंसान है, त्रुटियाँ करें, स्वीकार है, 
हर कदम धोखाधड़ी को क्या कहें !
फितरत का ऐसी क्या करें, हैरान हैं !!! !!!

Tuesday, January 12, 2021

'मुदित'

'मुदित' पलकों में समायी, 
नज़रें,  संजो रहे हैं, हम !!

समझ रहे हैं, फिर भी,  
समझने में लगे हैं, हम।