Monday, February 12, 2024

 लिखते हैं मगर
लिखने भर से
लेखन कहां होता
मेले में बिकने
ढोल पीटने से
कहां होता लेखन
लिखा याद रह जाए
लिखने वाला रहे न रहे
वो होता है लेखन !!

Sunday, January 21, 2024

चलें अनत में खप जाएं ।

सोच रहे अब बहुत हुआ
चुपचाप कहीं अब खो जाएं ।

सूना-सूना भीतर उभरे, 
ठौर न अब कोई भाए,

रह रह कर जीवन भरमाए,
भूला भूला अब  मग भटकाए।

पात झरे तन सूखा जाए, 
पल पल अब कुम्हलाता जाए ।

चल अब, ठीहे ओर उड़ें,  
उड़ते उड़ते उस पार चलें। 

क्या सोचें, क्या खोए-पाए !
चलें अनत में खप जाएं ।

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Thursday, January 18, 2024

बढ़ते ही जाना है।

 जब तक जीवन है 
सांस सांस जीना ही है।  
सुबह से शाम तलक 
कुछ तो करना ही है। 
रुचिकर हो ना हो
रस्ता तो कटना ही है। 
मन तन रुख सूख 
चुक तो जाना ही है !
जब तक हो पाए 
साथ गहे चलते रहना है।  
मगर किसी ठाँव तो 
सबको ठह ही जाना है।  
कारवां नहीं रुकता लेकिन, 
उसको बढ़ते ही जाना है।