Tuesday, November 9, 2021

ख्यालों में असलियत दिख नहीं पाती अक्सर,
कि हरेक ख़्वाब हकीकत नहीं बनता हरदम।  

कितना ही उड़ रहे हों परिंदे आसमानों तक, 
शाम ढले लौटना पड़ता ही है बसेरों तक।  

भली है संग संग चलने की ख्वाहिश, लेकिन 
लाओगे कहाँ से एक सी रफ्तार दम भर।  

No comments:

Post a Comment