Thursday, June 18, 2015

पवन ऐसा डोलै : अध्याय २. ५

५. भांति भांति बन बिरवा महकैं, कुंजन बसै सुवास 

Photo D. C. Kumar 

बरखा का फुहरा घूम घूम बरसने लगा, विंध्य की सूखी धरती हरिया गई, सूखी-सोई धाराएं जाग कर चमाचम लहकीं और पाखल-पाखल मचलती उतरती, झरने बनाती अनुपम दृश्यावलियां पिरोने लगीं, वन-लता-कुञ्ज-गाछ मह्माहए, चिरई चुनमुन-मनई-जनावर सबकै जियरा भीज गइल, इधर खांटी बनारसियों-मिर्ज़ापुरियों-इलाहाबादियों के मन मचलने लगे - गोठरी-गमछा थामे जंगल पहाड़ की सैर पर निकलने को। रिमझिम में भीजते मस्ती में कजरी-बिरहा के बोल लहराते जिधर देखो उधर देशी सैलानियों के रेले, अपने अपने हद्द-ओ-हिसाब से पैदल या दीगर सवारियों पर सवार। 

अपने  महाल के संगरियन संग हम भी निकल पड़े लिखनिया-भल्दरिया दरी की ओर। नारायनपुर से आगे घनी होती हरियाली के बीच से बढ़ते, घिरते उड़ते बादल और रह रह कर पड़ती हलकी और तेज़ बरसात के बीच टेप-रेकॉर्डर से उठते गिरिजा देवी के बोल बड़े मौजू लगे -

बरसन लागी बदरिया रू-अ-अ-म झू-अ-अ-म के
बरसन लागी बदरिया रू-अ-अ-म झू-अ-अ-म के
बरसन लागी बदरिया रू-अ-अ-म झू-अ-अ-अ-अ-म के 

ब-अ-रसन लागी बदरिया ---- हाँ बरसन लागि बदरिया-अ-अ-अ 
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बोलन लागी कोयलिया रू-अ-अ-म झू-अ-अ-म के
बोलन लागी कोयलिया रू-अ-अ-म झू-अ-अ-म के

बाएं बगल अहरौरा की बसावट छोड़ आगे बंधे के लहरा मारते जल के किनारे ऊंची-नीची ज़मीन पर दीखते पुराने किले के खण्डहर पर नज़र डालते गरई नदी की मशहूर लिखनिया-दरी पर कुछ देर के लिए ठहर गए। सामने की धार में मौज मनाते सैलानियों की मस्ती दिखी। 



पहले भी यहां मौज मनाने आ चुके साथी धारा के बाएं किनारे की करार की खोह में निरूपित हरबा-हथियार सहित हाथी-घोड़ों पर सवार और पैदल योद्धाओं के चित्र दिखाने लगे। विषय-वस्तु को देखते हुए इन्हे तकरीबन ५००-६०० बरस के आस पास का बताया गया, हांलाकि उनके नीचे के धुंधले हो चुके चित्र और ज़्यादा पुराने हो सकते हैं।  गाँव वाले इन्हे पथरा पर लेखानी कहते हैं।  इसी तर्ज़ पर इस झरने को 'लिखनिया दरी' या 'लेखनिया दरी नाम दिया गया है। आस-पास के  इस रास्ते से गुजरने वाले जाने कब से इन्हे इस नाम से पुकारते रहे कुछ पता नहीं।  


'दरी' का मतलब हम तो घर में फैला कर बिछाई जाने वाली दरी  से समझते रहे इसलिए पहली बार यहां के झरनों से जुड़ा यह शब्द सूना तो अचकचाया।  फिर अंदाज़ा लगाया कि जहां धारा चट्टानों पर बिछती हुई बहती है वहाँ उसे 'दरी -पथ' नाम मिला होगा। विज्ञजनों ने 'दरी' के मायने ऐसे पथ से बताए जो गुफाओं  के बीच से हो कर गुज़रता है। विंध्य की धाराएं जहां-जहां गुफाओं के बीच या आस-पास से गुज़र कर प्रपात बनाती हैं वहाँ उनके नाम के साथ 'दरी' शब्द जुड़ा मिलता है। 

हमारे कुछ साथी यहां से टोली बना कर बगल की पगिया पर 'चूना दरी' की ओर टहल दिए और हम आगे 'भल्दरिया दरी' की और बढे। लौटती पारी यहीं सबके मिल कर वापस लौटने तय हुआ।  

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कल की कल 

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