Explorer's Blog
Friday, November 20, 2020
मौजों पे बहा करती है।'
मौजों पे बहा करती है।'
अजीब फितरत है ज़िंदगी की भी,
हर एक सफ़हे पे रंग बदलती है।
जैसा सोचिए वैसे ही नहीं चलती,
हर कदम पे हैरान किए रहती है।
समझते हैं पूरी हो चली अब तो,
एक कहानी नयी शुरू करती है।
तजुरबे काम नहीं आते इसके आगे,
जिधर चाहे मौजों पे बहा करती है।
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