'लहरों पे बहके से बेड़े लगे।'
पौध चुन-चुन के रोंपे, यूँ बढ़ने लगे,
फूल, लतरों पे, बगिया में, खिलने लगे।
बात की, बात में, कितने दिलकश लगे,
अपने-अपने से इतने यूँ लगने लगे।
महकें मह-मह महकते फ़िज़ां में बसे,
सांस भर-भर हवाओं में उड़ते रहे।
देख कर, देखा-देखीं में रीझा किए,
देर तक, बेसुधी में यूँ डूबा किए।
लगते-लगते किनारे पे यूँ आ लगे,
जैसे लहरों पे बहके से बेड़े लगे।
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