Friday, July 10, 2020

'लहरों पे बहके से बेड़े लगे।'

@ (c) Rakesh Tewari
Published by Rakesh Tewari47 mins

'लहरों पे बहके से बेड़े लगे।'

पौध चुन-चुन के रोंपे, यूँ बढ़ने लगे,
फूल, लतरों पे, बगिया में, खिलने लगे।

बात की, बात में, कितने दिलकश लगे,
अपने-अपने से इतने यूँ लगने लगे।

महकें मह-मह महकते फ़िज़ां में बसे,
सांस भर-भर हवाओं में उड़ते रहे।

देख कर, देखा-देखीं में रीझा किए,
देर तक, बेसुधी में यूँ डूबा किए।

लगते-लगते किनारे पे यूँ आ लगे,
जैसे लहरों पे बहके से बेड़े लगे।
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