Monday, June 24, 2019

मनोवेग

स्नेह-आसक्ति, शत्रुता-मित्रता, सफलता-असफलता जैसे मनोवेगों के अतिरेक में आप अपने आप में नहीं रहते। उस समय वय, संबंधों, सामाजिक मान्यताओ और विवेक की सीमाएं बेमानी हो जाती हैं। इनसे निकल कर स्थिर भाव में आने में लम्बे समय, धैर्य, स्थान, परिस्थतियों, संग-साथ और विवेक का अहम् रोल होता है।

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