Monday, April 8, 2019

'तहे दिल से'

'तहे दिल से' 

लिखते हो,
बयार में, बारिश में, 
तपिश, नरम शीत में, 
धूप में, डूबे भावों मे
भिजो कर , 
दिल की कलम से। 

लिखते हो, 
बेबाक, बेधड़क, 
सीधा सपाट, 
बिना लाग लपेट, 
जैसा भी कुलबुलाता है, 
दिल की गहराई में। 

पढ़ते हैं, 
अनायास ही, 
पलट पलट कर, 
बार बार,
रस पाने में, 
दिल से सराहने में। 

देखते हो, 
जाने क्या !
इस पढ़ने में, कि 
कसर नहीं रखते, 
कुछ भी कैसा भी,
समझ लेने में। 

लिखते हो, 
बेलिहाज, बिना
आदर-संकोच के,
गाली गलौज में। 
समझ से परे,
किस फेर में !

लिखते हो, 
अपने नज़रिए से, 
मज़ाक करते हो, या सही में !
नहीं सोचते,
सीमाएं होती हैं, 
साथ चलने में। 

पढ़ते हैं, 
समझते हैं,
कई-कई, 
अजीब से, 
पहलू होते हैं,
एक ही पल्लू में। 

लिखे देते हैं। 
जैसे भी हो,
रचे हो कुदरत के ही, 
'भला हो आपका भी', 
हर्ज़ नहीं, यह
तहे दिल से लिखने मैं। 

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