Friday, December 8, 2017

ज़िंदगी और मौत की नदी: गंगा

ज़िंदगी और मौत की नदी: गंगा


अखबार खोलते ही दक्षिण कोरिया से कुम्भ मेले को यूनेस्को द्वारा विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में सम्मिलित किए जाने की खबर पढ़ कर चित्त चटक हो चला। अपनी अत्यंत प्राचीन सांस्कृतिक परम्पराओं पर गौरवान्वित हो उठा। सोचने लगा सचमुच हमारे हिन्दोस्तां का सारे जहान में कोई जोड़ नहीं। जितनी आस्था और भक्ति के साथ करोड़ों लोग देश के कोने कोने से गठरी-मुठरी लादे इस मेले में रेला लगाए जुटते हैं, और अनुष्ठान, स्नान-ध्यान, चर्चा-परिचर्चा करके जितनी शान्ति से अपने-अपने ठिकाने लौट जाते हैं, बिना किसी झगड़े-टंटे के, वैसा कहीं और नहीं देखा जाता। बचपन से ही देखते आए गंगा-यमुना के संगम पर इलाहाबाद में लगने वाले मेले की याद आने लगी। लेकिन यह मन-माधुरी ज्यादा देर टिक नहीं पायी।

मुंबई से प्रवीण जी द्वारा भेजी गयी उनके एक मित्र - विक्टर मैलेट - की लिखी किताब 'रिवर ऑफ़ लाइफ, रिवर ऑफ़ डेथ' भी उसी दिन खोलने का मौक़ा मिला। पहले कुछ पन्ने पलटते ही दिल्ली से कलकत्ता तक छोटी सी डोंगी में डगमग डगमग चलते हुए ' गंगा मइया' की दीन-दलित मलिन दशा देख कर दिल भर आने के पल, 'मइया' को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए दशकों से चलाए जा रहे अभियान, परियोजनाओं के बखान, उमा भारती जी से ले कर पंत प्रधान जी के संकल्प और निलय उपाध्याय जी की पीड़ा, गहन रूप घुमड़ने लगे - उस किताब में यह पढ़ कर:
"As Winston Churchill once said of the River Thames and Britain, the Ganges is the ' golden thread' of Indian History. On its banks are great cities, some living, others ruined and abandoned. that have been there for thousands of years and date back to the era when India was the world's largest economy, greater than China or the Roman Empire and three times the size of Western Europe.

So how can the Ganges be worshipped by so many Indians and be simultaneously abused by the same people? Why do Indians and their governments tolerate for even a week the over-exploitation of their holy river – sometimes to the point of total dehydration – by irrigation dams, and its poisoning by human waste and industrial toxins? Is it true that Hindu insist their Ganga is so pure that she can not be sullied by such pollution? Can the river be saved ?" (Victor Mallet 2017: River of Life, River of Death: The Ganges and India's Future. Oxford University Press: P. 4).

इस व्यक्तव्य में उठाए गए प्रश्न अपने, अपने देश और संस्कृति पर पड़े जोरदार तमाचे जैसे लगे, और आखरी लाइन में दी गयी चुनौती पढ़ करअपने निरीह हालात पे जार-जार रोना आया।

'गंगा जिएगी तभी भारत का भविष जिएगा और गंगा मरी तो भारत भी मर जाएगा', गंगा-प्रेमी लेखक की यह चेतावनी बहुत सरल शब्दों में कितना कुछ बयान कर रही है !!!!!!
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