Sunday, July 23, 2017

वजूद

Rakesh Tewari
Published by Rakesh TewariJuly 19 at 7:51pm

वजूद

यूं तो धूल-ओ-गुबार से
नाता रहा है अपना।
कहीं भी बैठे या पसरे, 
क्या बिगड़ गया अपना।
भटकते हुए अजनबियों के घर भी,
डेरा डाल रहे अपना।
अनजानों से भी मांग के खाया,
मनभाया अपना।
ऐसा ही आवारा अदना सा
वजूद है अपना।

जैसा भी है अपना वजूद,
तो अपना ही है।
ऐसा भी नहीं कि
बिना बुलाए ही,
चला जाए 'कहीं' भी।
फिर चाहे वो
ताज़ो-तख़्त,
महफ़िल-ए-सदारत,
या स्वप्निल संसार,
ही क्यों न हो।
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