Sunday, August 24, 2014

ढूंढते हैं

ढूंढते हैं 

१.  
हम रास्ते से भूले, मेले में घूमते हैं,
चादर बिछा के अपने, सामान बेचते हैं।  

२.
असली बता बता के, हर जिंस बेचते हैं,
तोता रटा के कैसा, कल-आज बेचते हैं।  

३.
मीठी जलेबी ले लो, घेवर तरी भरे हैं,
भर के हवा रंगीले, अरमान बेचते हैं।  

४.
कैसे लहक के चलते, झूलों पे झूलते हैं,
पेंगे लगा के लम्बी, आकाश चूमते हैं।  

५.
खाझे का गोलदारा, बुंदिया सजी हुई है,
गुन-चुन के रामदाना, गुड साथ बेचते है।  

६.
बच्चों के वो खिलौने, बुढ़िया के बाल भी हैं,
चटको चटक रुमलिया, चटकार बेचते हैं।   

७.
हर माल है टके में, रह रह के टेरते है,
दीन-ओ-ईमान ले लो, धेले में बेचते हैं।

डीह, थान, तीरथ, सौदे में बेचते हैं ,  
थोड़े टके की खातिर सब धाम बेचते हैं।

9.
खातिर ए तिज़ारत, तहज़ीब बेचते हैं,
अदबी चलन ओ पीपल बयार बेचते हैं।  

10.
है भीड़ भाड़ भारी, हम राह हेरते हैं,
होशो हवाश खो कर, अपने को ढूंढते हैं।
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