Monday, January 20, 2025

भोर बोलै कागा

 'भोर बोलै कागा' 


बीतल हो संझा अगोरत अगोरत, 
घेरि घेरि मनवा हो केतना उदास !

दिनवा न बीते न निंदियौ अमाय,
रहि रहि रतिया के सपनौ में आय !

कबौ बाल मुखड़ा उ लोनहा देखाय,
चक-मक चक-मक अँखियन में आय !

चरफर उ बतिया उ उमगन सुहाय, 
काँचे कांचे बंसवा कै बहंगर लचाय। 

हंसि हंसि मोहै मोहि जियरा जहान, 
सोचि सोचि बीते  रैन भइल बिहान !

भइल फिर पूरब दिशा में उजियार, 
भोर बोलै कागा बड़ेरी बडियार !

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