'आई सावनी फुहार !!'
Sunday, July 20, 2025
Saturday, April 5, 2025
'जीवन' April 2019
इक पतझड़ में
इक नव पल्लव
टहनी शाखों पर
झूल रहा।
फूटा पड़ता,
चटख रंग,
झाड़ों तरुओं पर
उछल रहा।
सूखे कूचे,
पक्के मकान
कोने अतरों से
झाँक रहा।
हरसिंगार,
मालती लता,
शोभित सुरभित,
महमहा रहा।
मधु परागमय
कुसुमों पर
मधुपों का कम्पन,
गूँज रहा।
नव जीवन ले ,
नव आशा भर,
आया वसंत, फिर
साज रहा।
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Rakesh Tewari
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Monday, March 10, 2025
Monday, January 20, 2025
भोर बोलै कागा
'भोर बोलै कागा'
बीतल हो संझा अगोरत अगोरत,
घेरि घेरि मनवा हो केतना उदास !
दिनवा न बीते न निंदियौ अमाय,
रहि रहि रतिया के सपनौ में आय !
कबौ बाल मुखड़ा उ लोनहा देखाय,
चक-मक चक-मक अँखियन में आय !
चरफर उ बतिया उ उमगन सुहाय,
काँचे कांचे बंसवा कै बहंगर लचाय।
हंसि हंसि मोहै मोहि जियरा जहान,
सोचि सोचि बीते रैन भइल बिहान !
भइल फिर पूरब दिशा में उजियार,
भोर बोलै कागा बड़ेरी बडियार !
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