Saturday, April 5, 2025

 'जीवन' April 2019


05.04. 2019


इक सूख चला
एक फूल रहा
जीवन का चरखा
घूम रहा।
इक पतझड़ में
इक नव पल्लव
टहनी शाखों पर
झूल रहा।
फूटा पड़ता,
चटख रंग,
झाड़ों तरुओं पर
उछल रहा।
सूखे कूचे,
पक्के मकान
कोने अतरों से
झाँक रहा।
हरसिंगार,
मालती लता,
शोभित सुरभित,
महमहा रहा।
मधु परागमय
कुसुमों पर
मधुपों का कम्पन,
गूँज रहा।
नव जीवन ले ,
नव आशा भर,
आया वसंत, फिर
साज रहा।
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Rakesh Tewari

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