'भोर बोलै कागा'
बीतल हो संझा अगोरत अगोरत,
घेरि घेरि मनवा हो केतना उदास !
दिनवा न बीते न निंदियौ अमाय,
रहि रहि रतिया के सपनौ में आय !
कबौ बाल मुखड़ा उ लोनहा देखाय,
चक-मक चक-मक अँखियन में आय !
चरफर उ बतिया उ उमगन सुहाय,
काँचे कांचे बंसवा कै बहंगर लचाय।
हंसि हंसि मोहै मोहि जियरा जहान,
सोचि सोचि बीते रैन भइल बिहान !
भइल फिर पूरब दिशा में उजियार,
भोर बोलै कागा बड़ेरी बडियार !
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