Saturday, June 24, 2017

'संग-साथ रहो'

'संग-साथ रहो'
पोखर के थिर जल जैसा,
सोया रहता, आ जगा दिया।
भूले भूले, अंतरमन में,
लहरों का लहरा उठा दिया।
रिश्तों-नातों वय-पहर सहित
कल्पों का अंतर मिटा दिया।
मृदुल सरस नम भावों से,
कोमल मन यूँ झिरियाय दिया।
बीते पल में फिर पलट गया,
ऐसा आ कर अनुराग दिया।
 समझा वो आए, साथ मिला,
 डूबे को ऐसा, हाथ दिया।
छवि-छाया, दिखलाए बिना,
 चेहरा भूला झिलमिला दिया।
 मौसम बारिश का ले आए,
घन मेघ-धूम घुमराय दिया।
गीतों में भीगे परछन से,
दुअरे पर ऐसा मान दिया।
 यूँ आन मिले, हिलमिल बैठो,
संग-साथ रहो जब जगा दिया।
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