Monday, February 18, 2013

रहि रहि टीसै कोर



1.
सुध पाए ही वो मिलीं, अंगुरी थामे धीय, 
पग-पग बाढी वल्लरी, घनी घनी घन पीय। 

2.
नेह घना उनका भया, धीय भई परनीय,
बाना ऐसा बुन चला, सम एकहि संगीत। 

3.
बिधना बिधि ऎसी बनी, छूट गई डग मोर,        
अपनी बखरी बस रही, सुधियन लपटी लोर। 

4.
आस रही यहु आस की, कबहु मिलें जो फेर, 
वहि बगिया बिरवा तरे, बतियावें रस भेय ।           

5.
लखि अवसर कोई घड़ी, पूछेंगे भरि सैन,
तेरी प्यारी वो लली, भूलहु बिसरै मोय !

6.
जो बिसरै, तो का कहै, बूझेंगे वहि ठौर,
हम तो अब लौं जी रहे, बांधे वाकी डोर।

7.
आस धरे निश दिन गए, जोहत बाट उचाट, 
भूलि कतउं ऐहैं इतै, टोहत टोहत राह।                                          

8.
का उनकौ है याद कछु, सपन लोक सह संग,
बहकी बहकी बतकही, मोहक मोदित अंग ।      

9.
तन उमगै उडतै चलै, मन महकै मकरंद, 
अबहूँ सुमिरन जब करैंसिहर उठै उदरंत।                


10.
भाव भरा मम घट रहे, छुवतै छिन छलकाए,
नियराएँ सुध बुध हरे, बिछुरे हिय हलकाए।  

11.
बरस बरस बीता किए, आस संजोए रैन, 
जीवन दिन सरका किए, जस मुठी से रेत। 

12.
तब लै पंजा भींच कै, आस मरोरी पेंच,  
दांव धरे ज्यों देर से, बाज़ उठाए खेंच।  

13.
वहौ आस अब चुक गई, रीता चिमड़ा डोल,    
कही ना जाए मनकही,  रहि रहि टीसै कोर।  

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