Explorer's Blog
Monday, July 25, 2022
कितने बहुरंगी --- !!
'
कितने बहुरंगी --- !!'
कभी देखते ही वितृष्णा,
कभी रीझ जाते हैं !!
कभी कुछ पढ़ कर ही,
आंसू छलकने लगते हैं,
और कभी पथरा कर,
पसीजते भी नहीं।
कभी उदार-कंजूस,
नरम-गरम,
एक साथ ही,
कितने अजीब !!
हम, कितने बहुरंगी होते हैं !!
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