Explorer's Blog
Tuesday, November 9, 2021
ख्यालों में असलियत दिख नहीं पाती अक्सर,
कि हरेक ख़्वाब हकीकत नहीं बनता हरदम।
कितना ही उड़ रहे हों परिंदे आसमानों तक,
शाम ढले लौटना पड़ता ही है बसेरों तक।
भली है संग संग चलने की ख्वाहिश, लेकिन
लाओगे कहाँ से एक सी रफ्तार दम भर।
Sunday, November 7, 2021
कितना हू मन अटका भटका,
बांध चला चल अगली ठौर !!!
07 Nov 2017
Friday, November 5, 2021
कोशिश तो बहुत की
संजोने की,
शब्दों में समाते ही नहीं।
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