Friday, August 2, 2019

वक्त चलने का

वक्त चलने का ज्यों-ज्यों करीब आ रहा है,
ये वादी, ये मंजर, दरख्तों के घेरे,
ये पर्वत, ये दामन, ये बादल घुमेरे,
यूँ आँखों में भरने का जी कर रहा है .
Comments
  • Ashvani Kumar Very heartiestic....
    1
  • Omprakash Pareek कभी बूंदें, कभी बौछारें तो कभी बरसे बरखा / कभी धूप खिले,कभी छाए घटा तो कभी बादल गरजें / कभी बिजली चमके औरअंधेरे से लुका-छिपी खेले / अब ये कुदरत की हैं अठखेलियाँ या कोई जादू / डर है कि कहीं खो न जाऊं मैं इन्हीं में रम कर
    (पंक्तियां मेरी - प्रेरणा आपकी 
    पंक्तियां)
    2
  • Vidya Vinod Pathak सुंदर सोच।
    1
  • Prem Chand Pandey राकेश तिवारी जी, U.S.A. पहुँच कर वहाँ के वातावरण और प्रकृति के बारे में अवगत कराइएगा

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