Sunday, April 3, 2016

बवंडर


बवंडर

है किस कदर गुरूर, वो बे बात ही तनते गए,
समझे नहीं बूझे नहीं, अपनी अड़ी पे अड़ गए।


बात ही ताकत में वो, जो पा गए वो तप गए, 
जिस तरफ भी देख लें, सब ताल पोखर जल गए।


ये भी जाएँगे वहीं, जिस घाट पर सब लग गए, 
हैं तयशुदा राहें वही, जिन पर सभी चलते गए ।


बात ये समझेंगे क्यों, इस वक्त वे अकड़े हुए, 
क्यों लोग उनकी सह रहे, हालात में जकड़े हुए।


सब में है इतना दम कहाँ, लड़ते रहें लिथड़े हुए, 
चल दिए जाने कहाँ, ये टीस अन्दर ही लिए ।


भरभरा कर आस के, बलुहा घरौंदे ढह गए, 
सब ख्वाब चकनाचूर हो, बालू-चरों में बस गए।


फिर हवा घुमरी बनी, फिर से बगूले बन गए,
फिर देखते ही देखते, बन कर बवंडर उड़ गए।

------
LikeShow more reactions
Comment

No comments:

Post a Comment