Friday, December 19, 2014

काहे चिंता करें

काहे चिंता करें

अनुभव की सीमा नहीं, पढ़े-लिखे नहीं पार, 
सबक नए रोजहि मिलैं, अजब-गजब संसार।    

लागहि सब जग गहि लिए, सागर जस भा ज्ञान,
तबही लहरा अस लगै, डूबत उबरत जात ।  

सब चाहैं अपनहि भला, आपहि पट्टी आँख, 
ठेलम ठेला अस मचा, मिले ना सांची राह। 

बिरवा रोपैं भटकटा, फूलै पनपै खूब, 
फल पावैं माहुर भरा, केकरा देवैं दोष।   

मन ही मन चाहें भला, किए बिना सत काज, 
अपने तृण तोड़ें नहीं, भला करें भगवान।   

धरम हानि करते चलें, बिना किए परवाह, 
हम काहे चिंता करें, प्रभु ही लें अवतार।  

------

No comments:

Post a Comment