Monday, December 16, 2024

जिस भी घाट पे दिखा किनारा मंजिल दूर हुई, 
जिस कगार का लिया सहारा वो ही खिसक गई । 

फिर भी एक तसल्ली पाई अंगुरी हाथ गही,
पूरी नहीं मगर मगन मन थोड़ी बहुत रही ।