चुप रहने का एक मकसद साधना में लगे रहने में साथ देना भी होता है।
Friday, January 29, 2021
Tuesday, January 26, 2021
Sunday, January 24, 2021
बलराम शुक्ल : कर्णजीवातुभूतम् (कीमिया-ए-इश्क़)
कर्णजीवातुभूतम् (कीमिया-ए-इश्क़)
बलराम शुक्ल
-1-
विरञ्चिना विरचिता सुन्दरि! त्वं न सुन्दरी।
तथा, यथा मनस्तूल्या मया त्वं सुन्दरीकृता॥
हे सुन्दरी,
ब्रह्मा ने भी तुम्हें उतना सुन्दर नहीं बनाया है
जितना कि मैंने अपने मन की कूँची से सँवारकर
तुम्हें दर्शनीय बना दिया है
-2-
त्वं मनोमुकुरे यावन्मयाकल्प्य विलोकिता।
न काचदर्पणे तावत् त्वयात्मापि निरीक्षितः॥
खूब सजा सँवार कर
हृदय के दर्पण में
जितना ध्यान से मैंने तुम्हें निहारा है
उतना तो काच की आरसी में
तुमने भी अपने आप को नहीं देखा होगा
मया मनोरथैर्यावत् त्वत्प्रतोल्यः प्रतोलिताः।
त्वद्वीथीनामभिज्ञानं न तवापि तथा भवेत्॥
मन के रथ पर सवार होकर
(या, मनोरथों के वश)
तुम्हारी गलियों को
जितना मैंने नापा है
अपनी गलियों की उतनी पहचान तो तुम्हें भी नहीं होगी
-4-
यावदाकारितं नाम मया तव यथा मिथः।
न तावन्न तथा सर्वैः सम्भूय स्वजनैस्तव॥
अकेले में
तुम्हारा नाम जितना मैंने पुकारा है
उतना तुम्हारे सारे सगे–सम्बन्धियों ने
मिलकर भी नहीं लिया होगा
-5-
यत्सकृन्मितभाषिण्या भाषितं जातु न त्वया।
कर्णजीवातुभूतं ते तदप्याकर्णितं वचः॥
अल्पभाषिणी तुमने जो बातें एक बार भी नहीं कही
उन कर्णरसायन जैसी बातों को भी
मैंने सुन लिया है!
-6-
द्वित्रकृत्रिमगद्यानि गदितानि सह त्वया।
पद्यत्वेन समापाद्य महाकाव्यं मया कृतम्॥
तुम्हारे साथ
जो २–३ कृत्रिम गद्य में बातें हो सकी
उन्हीं को भावपूर्ण पद्य में बदल कर
मैंने महाकाव्य लिख दिये हैं!
Thursday, January 21, 2021
हैरान हैं
वैसे तो अपना देश है, महान है,
इंसान है, त्रुटियाँ करें, स्वीकार है,
हर कदम धोखाधड़ी को क्या कहें !
फितरत का ऐसी क्या करें, हैरान हैं !!! !!!
Tuesday, January 12, 2021
'मुदित'
'मुदित' पलकों में समायी,
नज़रें, संजो रहे हैं, हम !!
समझ रहे हैं, फिर भी,
समझने में लगे हैं, हम।
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