मीजोरम में 'राम-राज्य'
बांस- नरकुल के झाड़ों और केले के घने वनों में से झांकते शाल, कटहल और दूसरे गाछ वाली घनी हरियाली से ढके पहाड़ों की ढलान पर जहाँ-तहाँ झूम खेती के लिए साफ़ किये गए पुराने हरे हो चले और पीले ताज़े खेतों के चप्पे। मछली पालने के लिए बांधे गए पोखरों के झिलमिल जल-तल । घूमती सड़क के उतार चढ़ाव पर चलते दिखते दूर तक फैले नीले आकाश में तिरते चलते धवल धुँआरे बादल।
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चलते चलते ऐडम से चिट-चैट करते बढ़ते जगह जगह सड़क के किनारे निरल्ले में पार्क की गयी
मोटर साईकिलों के बारे में पता चला आस पास के किसानों की हैं यहां खड़ी कर के खेतों में काम करने
निकल गए हैं ऊपर या नीचे वाले खेतों में। शाम के धुंधलके में लौटेंगे तो इन पर सवार हो कर वापस
अपने घर गांव चले जाएंगे। इसी सिलसिले में ऐडम ने आगे चल कर अनोखी दूकानें दिखाने का ज़िक्र
करते हुए ड्राईवर से मीज़ों भाषा में आगे उन ठिकानों पर रुकने को कहा।
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आगे, पहाड़ से आ रही पतली जलधार आगे टीन सटा कर बनाए गए पनाले के उस किनारे पर बांस की
एक गुमटी दीखते ही हमारी गाड़ियों की कानवाई ठहर गयी। वहाँ सुनसान में ना कोई आदमी ना दूकानदार।
गुमटी में दिखे कतार में धरे बोरों की कतार और करीने से सजी सब्ज़ियों पर लिखे उनके दाम, किसी पर
रुपए २०, किसी पर १० रुपए। बीच के बांस से बाँध कर लटका दिखा प्लास्टिक का डिब्बा जिसके ढक्कन
पर लंबा कटा छेद। ऐडम ने बताया वहाँ लगी तख्ती पर लिखा है - रुकिए, कुछ ना कुछ खरीदिए और
उनकी कीमत जोड़ कर डिब्बे के अन्दर डाल दीजिए। हमारे साथ चल रहे इंटैक के कन्वेनर रोहिनथंगा,
को कन्वेनर रिन संगा, गार्ड, ड्राइवर सबने वहाँ से कोई ना कोई मनचाही फल या सब्ज़ी उठा ली उनकी
कीमत जोड़ी और उतनी रकम डब्बे के छेद में सरका दी।
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ऐडम ने बताया इन गुमटियों में लगी खुली दूकान पर कोई नहीं बैठता, ना तो दुकानदारी के लिए और
ना निगरानी के लिए। दूकान लगाने वाले खेतों में काम करने चले जाते हैं, दूकान को लोगों के ईमान के
सहारे छोड़ कर, और, खरीददाार उनके विश्वास की आस बनाए रखने में कसर नहीं रखते। संझा ढले खेतों
में काम काज निपटा कर लौटने वाले किसान अपनी दूकानों की आमदनी समेट कर आराम से अपने घर
चले जाते हैं।
मीज़ोरम में रम रहे ऐसे 'राम राज' जैसे विधि-विधान कम से कम मैंने तो इसके पहले देश-विदेश में
कहीं नहीं देखे।
--------कहीं नहीं देखे।
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