Monday, January 20, 2025

भोर बोलै कागा

 'भोर बोलै कागा' 


बीतल हो संझा अगोरत अगोरत, 
घेरि घेरि मनवा हो केतना उदास !

दिनवा न बीते न निंदियौ अमाय,
रहि रहि रतिया के सपनौ में आय !

कबौ बाल मुखड़ा उ लोनहा देखाय,
चक-मक चक-मक अँखियन में आय !

चरफर उ बतिया उ उमगन सुहाय, 
काँचे कांचे बंसवा कै बहंगर लचाय। 

हंसि हंसि मोहै मोहि जियरा जहान, 
सोचि सोचि बीते  रैन भइल बिहान !

भइल फिर पूरब दिशा में उजियार, 
भोर बोलै कागा बड़ेरी बडियार !

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Monday, December 16, 2024

जिस भी घाट पे दिखा किनारा मंजिल दूर हुई, 
जिस कगार का लिया सहारा वो ही धसक गई । 

फिर भी एक तसल्ली पाई अंगुरी हाथ गही,
पूरी नहीं मगर मगन मन थोड़ी बहुत रही ।

Sunday, November 24, 2024

 आज की रात फिर चांद पूरा खिला,
आज फिर से समुंदर में लहरा उठा ।
जहां भी जगत में रहेगा अंधेरा,
वहीं का सफर तय करेगा अकेला ।
रात भर का रहेगा बसेरा यहां,
कहाँ पर रुकेगा ये जाना कहाँ।
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15 Nov 2024

Friday, August 30, 2024

 इसी बहाने घूमे टहले,
बोले बहके, नई डगर पे,
विस्मय भर भर देखे समझे, 
पर्वत बादल धरती पानी, 
हासिल पाए नए तजुर्बे,
एक टिकट में दो दो खेले,
दाम वसूले घलुए में ! 
रहे ज़माना ठेंगे पे  !!

24 August 2024

Saturday, August 3, 2024

तारीखें


ये तारीखें भी गजब करती है,
फिर से आकर वहीं ठहरती हैं।  

उन्हीं लम्हों में फिर जिलाती हैं, 
उन्हीं लफ़्ज़ों में बात करती हैं।
  
उन्हीं जज़बातों को फिर जगाती हैं, 
नरम सोतों सा फिर बहाती हैं।  

कुरेद कर फिर उधेड़ जाती हैं,   
किसी चरखी सी घूम आती हैं !

मुंदी पलकों में बसी बरसों से, 
घुमड़ आँखों में डुब-डुबाती  हैं।  

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Friday, July 26, 2024

निरभ्र क्षितिज,
मुचमुचाती आँखें, 
अव्यक्त अबूझ चाहतें। 
जिज्ञासा, कौतूहल, रुचियाँ।  
आकर्षण, सौंदर्य बोध, 
रसना, आसक्ति, 
शिक्षा, ज्ञान, पाप-पुण्य।  
गुण-दोष, राग-विराग,
सम्मोहन,अनुभव, विवेक, 
पूर्ण समुच्चित एकरूप।  

Wednesday, July 17, 2024

'सफरी' किसी ठौर पे, टिकते ही कहाँ !! 
ठहर जाएं इसी ठौर पे, ये कैसे कहें !!