जिस भी घाट पे दिखा किनारा मंजिल दूर हुई, जिस कगार का लिया सहारा वो ही खिसक गई ।
फिर भी एक तसल्ली पाई अंगुरी हाथ गही, पूरी नहीं मगर मगन मन थोड़ी बहुत रही ।
Sunday, November 24, 2024
आज की रात फिर चांद पूरा खिला,
आज फिर से समुंदर में लहरा उठा ।
जहां भी जगत में रहेगा अंधेरा,
वहीं का सफर तय करेगा अकेला ।
रात भर का रहेगा बसेरा यहां,
कहाँ पर रुकेगा ये जाना कहाँ।
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15 Nov 2024
Friday, August 30, 2024
इसी बहाने घूमे टहले,
बोले बहके, नई डगर पे, विस्मय भर भर देखे समझे, पर्वत बादल धरती पानी, हासिल पाए नए तजुर्बे, एक टिकट में दो दो खेले, दाम वसूले घलुए में ! रहे ज़माना ठेंगे पे !!