जोहा करेंगे
आते शहर में रहते, आ कर के चले जाते,
हमको पता न लगता, ना इन्तिज़ार करते।
अपने में मगन रहते, ऐसा तो नहीं करते,
आहट कोई भी सुन कर, यूं तो नहीं हुड़कते।
सबको बता के आए, यह आस क्यों जगाए,
क्या बात है कि आके, मिलने भी नहीं आए।
इतना भी क्या तकल्लुफ, यूं दूर-दूर रह के,
थोड़ा सा समय रखते, संग-साथ रह के जाते।
परदा तनिक सा हटता, दो-चार बात कर के,
सुन कर सुना के अपनी, दूरी घटा के जाते।
गर वक्त की कमी थी, हमको ही बुला लेते,
हिचकी जो आ रही है, कमतर करा के जाते।
अब जाने कब जुड़ेगा, यह योग आसमां में,
होंगे उन्ही दरों पर, टहलेंगे साथ मिल के।
गिनती के दिन बचे हैं, साँसों की पोटली में।
जोहा करेंगे फिर भी, किस्मत की करवटों में।
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