Thursday, May 18, 2017

अक्षय-निधि

अक्षय-निधि
१.
पाय गए, स्नेह धन,
भित्तर लै सिहराय,
ढरकत जाए गीत मय,
घट उप्पर उपराय।
२.
बरबस पाए या निधी,
राखै हिय चबदाय,
हारिल जस लकड़ी गहे,
खुले गगन पत्ताय।
३.
ऐसी लागी लाग यह,
लागी रहै लसाय,
जब लागै चुकता रही,
फिर लागै छलकाय।
४.
डूब-डूब मधु मालती,
होवैं अस मद-अंध,
जागत दुनिया में फिरै,
झिर-झिर विहरै संग।
५.
बरतन लागै कृपन सम,
 राखै सबते गोय,
 पट खोलै एकंत में,
गिन-गुन परतै टोय।
६.
डरपत मन सोचा करे,
कैसेहु छीज ना जाय।
फिकिर सतावै अब हमें,
कस संचैं सरियाय।
७.
समय बली या जगत में,
सबकुछ लेत समाय,
मोरे बिधाना अस करौ,
अक्षय-निधि बन जाय।
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