खेवनहार
जीवन रस आवा करैं मिले-जुले एकसार,
मन-व्याकुल डूबै उबर, आर न पावै पार।
कैसा इस संसार में, चला करे व्यापार ?
तनुक राह अटपट लगै, बदलै सब व्यवहार।
तनुक राह अटपट लगै, बदलै सब व्यवहार।
बड़े पुरनिया कहि गए, तबौ नहीं एतबार,
जब तक अपने नैन ते, नहिं अवलोकहिं आप।
पढ़ा सुना गुनतै रहैं, समझ न पावैं सार,
नियत घड़ी आवै तबै, आखर हों साकार।
नियत घड़ी आवै तबै, आखर हों साकार।
कभी कभी ऐसा घटै, अकिल न पावै पार,
सब कुछ लागै तयशुदा, मानै बारमबार।
सब कुछ लागै तयशुदा, मानै बारमबार।
हम समझैँ हम कर रहे, करता सब करतार,
डाँड़ गहावै हाथ में, खेवै खेवनहार।
डाँड़ गहावै हाथ में, खेवै खेवनहार।
----
(मई २०१३ - मई २०१७)
No comments:
Post a Comment