Saturday, April 5, 2025

 'जीवन' 5 April 2019

इक सूख चला
एक फूल रहा
जीवन का चरखा
घूम रहा।
इक पतझड़ में
इक नव पल्लव
टहनी शाखों पर
झूल रहा।
फूटा पड़ता,
चटख रंग,
झाड़ों तरुओं पर
उछल रहा।
सूखे कूचे,
पक्के मकान
कोने अतरों से
झाँक रहा।
हरसिंगार,
मालती लता,
शोभित सुरभित,
महमहा रहा।
मधु परागमय
कुसुमों पर
मधुपों का कम्पन,
गूँज रहा।
नव जीवन ले ,
नव आशा भर,
आया वसंत, फिर
साज रहा।
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 5 April 2022 

'धमाली' !!!

धूम मचा कर घूम 'धमाली' !!!
धूम मचा कर घूम !!
नदिया वन मरुथल में घूम !!
पर्वत पर्वत झूमो घूम !!
दुनिया न्यारी न्यारी घूम !!
सध जाए तो संग में घूम !!
वरना सकल अकेले घूम !!
घूम घूम रस चाखौ घूम !!
चाखौ सुधा घनेरी घूम !!
इक दिन पंछी उड़ जाएगा,
बन कर गगन विहारी घूम !!
धूम मचा कर घूम 'धमाली' !!!
धूम मचा कर घूम।!

Monday, March 10, 2025

 'पलाश-ओ-सेमल !!'

फगुनहट में
दहक रहे
दो फूल !!


बगिया-पगिया,
परग परग,
चहुं ओर !!


एक रंग, भेय डारे,
दिनोदिन गढ़ाय,
धोए न धोवाय !!


दूजा, फूले-चढ़े-घन,
पाके फरियाय,
उड़ि उड़ि जाए !!
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Monday, January 20, 2025

भोर बोलै कागा

 'भोर बोलै कागा' 


बीतल हो संझा अगोरत अगोरत, 
घेरि घेरि मनवा हो केतना उदास !

दिनवा न बीते न निंदियौ अमाय,
रहि रहि रतिया के सपनौ में आय !

कबौ बाल मुखड़ा उ लोनहा देखाय,
चक-मक चक-मक अँखियन में आय !

चरफर उ बतिया उ उमगन सुहाय, 
काँचे कांचे बंसवा कै बहंगर लचाय। 

हंसि हंसि मोहै मोहि जियरा जहान, 
सोचि सोचि बीते  रैन भइल बिहान !

भइल फिर पूरब दिशा में उजियार, 
भोर बोलै कागा बड़ेरी बडियार !

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