पहले ,
आँच सुलगाते,
हवा देते, लपटाते,
तापते, लाभ लेते,
बड़वानल दहकाते हैं .
आँच सुलगाते,
हवा देते, लपटाते,
तापते, लाभ लेते,
बड़वानल दहकाते हैं .
फिर, जब खुद भी
जलने लगते,
सर्वग्राही आग में,
तब लपटों को
गरियाते पछताते हैँ .
जलने लगते,
सर्वग्राही आग में,
तब लपटों को
गरियाते पछताते हैँ .
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