वक्त चलने का ज्यों-ज्यों करीब आ रहा है,
ये वादी, ये मंजर, दरख्तों के घेरे,
ये पर्वत, ये दामन, ये बादल घुमेरे,
यूँ आँखों में भरने का जी कर रहा है .
ये वादी, ये मंजर, दरख्तों के घेरे,
ये पर्वत, ये दामन, ये बादल घुमेरे,
यूँ आँखों में भरने का जी कर रहा है .
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