Monday, November 4, 2019

'तार-तार हो सरक गयी'

Rakesh Tewari 31. 10.2019

'तार-तार हो सरक गयी'

सोचता रहा,
पग, धरते-बढ़ते,
कंकरीली पथ-पथरी,
भोथराय गयी ।

तट पर आन लगी,
भावों वाली बहिया,
गतिहीन हुई।
झप झप करती
सुख-दुःख ङोलनी, ठहरी,
लहरें, समभाव भईं ।

रसते-रमते,
हो चले परे,
उलझे फन्दों से दुनियावी।
गड़ने लागी,
हलकी हलचल से ही लहरें
तटबन्ध तोड़ उफनाय चलीं।
बड़ा वेग धर घन आयी .
कोमल मन पर चढ़ी यवनिका,
तार तार हो सरक गयी।।


भवसागर पार पँवरते बहते,
झंझावातों से जूझ रही ,
प्रबल, मोह-माया में,
सहसा, तलवों में नरम दूब
सहसा बढ़ती नेह धार, फिर,
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