· 2019
कहाँ छुपातीं हैं !!!
घिसी पुरानी
पगियों पर
पगध्वनियाँ
सून पड़ती हैं ।
सजे संजोए
ताखों पर
छवियाँ उनकी
दिख जाती हैँ ।
ढेरों खुशियां,
मस्त-मस्तियाँ,
कितनी सुधियाँ,
भरी झोलियाँ,
पलट-पलट,
सिहराती आतीं,
आतुर लालायित,
कर जातीं हैं।
बीती बतियाँ,
गली, मोहाल,
दरवाज़ों की,
धुंधली तख्ती,
नाना नानी,
बाबू अम्मा,
कितनी बातें,
फिर फिर आतीं हैं।
पीली पड़ती
फोटो वाली,
छवियाँ धुंधली,
बंद झरोखों से,
आ आ कर,
झांका करतीं,
मन ही मन,
टहला करतीं हैं।
संगी साथी,
रिश्तेदारी
शहर वही,
वही, कालोनी,
चहकन टहकन,
तोतों वाली,
बालकनी में,
दिखती हैं।
पोर्टिको के
झूले पर,
पेंगों वारी,
बगिया प्यारी,
तलवों में ज्यों
दूब सुहाती,
अनायास,
आ जाती है।
क्या क्या, कितनी
जीवन-थाती,
लुकाछिपी
आती जाती,
बहुत कहीं,
कुछ नहीं कहातीं,
पर, छज्जों पर,
कहाँ छुपातीं हैं !!!
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कहाँ छुपातीं हैं !!!
घिसी पुरानी
पगियों पर
पगध्वनियाँ
सून पड़ती हैं ।
सजे संजोए
ताखों पर
छवियाँ उनकी
दिख जाती हैँ ।
ढेरों खुशियां,
मस्त-मस्तियाँ,
कितनी सुधियाँ,
भरी झोलियाँ,
पलट-पलट,
सिहराती आतीं,
आतुर लालायित,
कर जातीं हैं।
बीती बतियाँ,
गली, मोहाल,
दरवाज़ों की,
धुंधली तख्ती,
नाना नानी,
बाबू अम्मा,
कितनी बातें,
फिर फिर आतीं हैं।
पीली पड़ती
फोटो वाली,
छवियाँ धुंधली,
बंद झरोखों से,
आ आ कर,
झांका करतीं,
मन ही मन,
टहला करतीं हैं।
संगी साथी,
रिश्तेदारी
शहर वही,
वही, कालोनी,
चहकन टहकन,
तोतों वाली,
बालकनी में,
दिखती हैं।
पोर्टिको के
झूले पर,
पेंगों वारी,
बगिया प्यारी,
तलवों में ज्यों
दूब सुहाती,
अनायास,
आ जाती है।
क्या क्या, कितनी
जीवन-थाती,
लुकाछिपी
आती जाती,
बहुत कहीं,
कुछ नहीं कहातीं,
पर, छज्जों पर,
कहाँ छुपातीं हैं !!!
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