Thursday, October 25, 2018

'ट्रैफिक में।'

'ट्रैफिक में।' 

हम सब 
आदी हो चुके हैं 
दो राहों, तिराहों,
चौराहों की 
धकापेल में। 
  
अपनी ही,
रौ में, 
उलझे हुए,
अपने अपने 
मतों में।  

कोई नियम नहीं 
मानता कोई, 
अड़े रहते हैं 
बस अपने ही
सच में।  

कोई बैक गियर 
नहीं लगाता, 
और न किसी को
लगाने देता है, 
लौटने में। 

रास्ता देने, 
दिलाने में, 
यकीन नहीं, 
सुलह, समझौते की  
राह में।  

हम चलते हैं 
मगरूर, बेलगाम, 
दाएं बाएं
किसी भी,
 साइड में।  

लगा रहे जाम, 
खड़े रहे सब, 
यथावत,
कोई बढ़ने न पाए, 
किसी राह में।  

कहते हैं 
जहाँ से निकल पाओ 
निकल जाओ, 
यहाँ ऐसा ही 
चलता है, सब
अव्यस्था में।  

सभी दिशाओं में,
चलते हैं लोग, 
सकते में डरते,
डराते, थमते 
अँधेरे में।  

गाँठ खोलने की 
नहीं सोचते,
माहिर हैं, 
और गहरे, 
गांठियाने में।  

फिर भी,
हम सबके सब,
बढ़ते जाते है,
ठसमठस, 
ट्रैफिक में। 

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