'काल्ह आय ना आय !!!' .
किसी भी कारण से किसी और पर निर्भर होने की दशा में, कबीर दास जी की कहन मान कर,केतनाहू 'काल्ह करै सो आजु कर' पर चलना चाहै, आदमी परबस हो कर रह जाता है। तिस पर, अगर, अगला हर बार 'काल्ह' पर ही टालता जाय तब कहा कहै इसके सिवा: -
अरजी हमरी हैं वहां, कहते आयहु काल्ह,
काल सिरहाने है खड़ा, बाकी कछु ही काल।
काल सिरहाने है खड़ा, बाकी कछु ही काल।
यहै बात फिन फिन कहैं, सोच बतइहौं काल्ह,
हम स्वाचैं कल्ह आएगा, थोरै पल की बात।
हम स्वाचैं कल्ह आएगा, थोरै पल की बात।
वे बिसराएँ, कल का कहा, ना सुमिरैं वै काल्ह,
का जाने का काज कस, कबहुँ तो ब्वालें आज।
का जाने का काज कस, कबहुँ तो ब्वालें आज।
काल्हअगोरत जुग गवा, फिरहु न आए काल्ह,
लाल बुझक्कड़ काल्ह भा, ना जाने कब आय।
लाल बुझक्कड़ काल्ह भा, ना जाने कब आय।
काल्ह तो ऐसा काल्ह भा, काल्ह कबहुँ न आय,
काल सुनिश्चित आएगा, काल्ह आय ना आय।। .
काल सुनिश्चित आएगा, काल्ह आय ना आय।। .
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